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________________ १८४९ पुद्गल अध्ययन ८४. विविह पगाराणं परमाणु पोग्गल-खंधाणं ठिई परूवणं प. परमाणु पोग्गले णं भंते ! कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, एवं जाव अणंतपएसिओ। प. एगपदेसोगाढे णं भंते ! पोग्गले सेए तम्मि वा ठाणे अन्नमि वा ठाणे कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभाग, एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढे। प. एगपदेसोगाढे णं भंते ! पोग्गले निरेए कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं। एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढे। प. एगगुणकालए णं भंते ! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अणंतगुणकालए, एवं वण्ण-गंध-रस-फास जाव अणंतगुणलुक्खे। ८४. विविध प्रकारों से परमाणु पुद्गल स्कन्धों की स्थिति का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु पुद्गल काल की अपेक्षा कब तक रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! एक प्रदेशावगाढ पुद्गल स्वस्थान में या अन्य स्थान में ___काल की अपेक्षा कब तक सकम्प रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात भाग तक सकम्प रहता है। इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशावगाढ पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! एक प्रदेशावगाढ पुद्गल काल की अपेक्षा कब तक निष्कम्प रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्प रहता है। इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशावगाढ पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! एक गुण काला पुद्गल काल की अपेक्षा कब तक एक गुण काल रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है। इसी प्रकार अनन्तगुण काले पुद्गल पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वर्ण-गंध-रस यावत् अणंतगुणरूक्ष स्पर्श पुद्गल के लिए कहना चाहिए। इसी प्रकार सूक्ष्म परिणत एवं बादरपरिणत पुद्गल के सम्बन्ध में कहना चाहिए। प्र. भंते ! शब्दपरिणत पुद्गल काल की अपेक्षा कब तक शब्द परिणत रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात भाग तक रहता है। जिस प्रकार एक गुण काले पुद्गल के विषय में कहा उसी प्रकार अशब्दपरिणत पुद्गल के विषय में कहना चाहिए।' ८५. विविध प्रकारों के परमाणु पुद्गल स्कन्धों के अंतर काल का प्ररूपणप्र. भंते ! परमाणु-पुद्गल का अन्तर काल कितना होता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है। प्र. भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध का अन्तर काल कितना होता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल का अन्तर होता है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! एक प्रदेशावगाढ सकम्प पुद्गल का अन्तर काल कितना होता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है। एवं सुहमपरिणए बायरपरिणए पोग्गले वि। प. सद्दपरिणए णं भंते ! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, असद्दपरिणए जहा एगगुणकालए। -विया. स.५, उ.७,सु.१४-२१ ८५. विविह पगाराणं परमाणुपोग्गलखंधाणं अंतरकाल परूवणं- प. परमाणुपोग्गलस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, प. दुपएसिएणं भंते ! खंधस्स अंतरं कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अणतंकालं, एवं जाव अणंतपएसिओ। प. एगपएसोगाढस्स णं भंते ! पोग्गलस्स सेयस्स अंतर कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहणणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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