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________________ १८३६ गहियाई, बद्धाइं, पुट्ठाई, कडाई, पट्ठवियाई, निविट्ठाई अभिनिविट्ठाई, अभिसमन्नागयाई, परियाइयाई, परिणामियाई, निज्जिण्णाई, निसिरियाई, निसिट्ठाइं भवंति, द्रव्यानुयोग-(३) बद्ध (एकमेक) किये, स्पृष्ट किये, कृत (रचित) किये, प्रस्थापित (स्थिर) किये, निविष्ट (स्थापित) किये, अभिनिविष्ट (सर्वथा संलग्न) किये, अभिसमन्वागत किये, पर्याप्त कर लिये, परिणामिक किये, निर्जीर्ण किये, पृथक किये और निःस्पृष्ट (परित्यक्त) किये हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"औदारिक पुद्गल परिवर्त, औदारिक पुद्गल परिवर्त है।" से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“ओरालिय पोग्गलपरियट्टे,ओरालिय पोग्गलपरियट्टे।" एवं वेउव्वियपोग्गल परियट्टे वि, इसी प्रकार वैक्रियपुद्गल-परिवर्त के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-जीव ने वैक्रिय शरीर में रहते हुए वैक्रिय शरीर योग्य द्रव्यों को वैक्रिय शरीर के रूप में ग्रहण किये हैं यावत् निःसृष्ट किये हैं। शेष सब कथन पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी प्रकार आन-प्राण पुद्गल-परिवर्त पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-आन-प्राण योग्य समस्त द्रव्यों को आन-प्राण रूप में ग्रहण किये हैं यावत् निःसृष्ट किये हैं। शेष सब कथन भी पूर्ववत् जानना चाहिए। ७१. औदारिकादि सात पुद्गल परिवों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन औदारिक पुद्गल परिवर्तों यावत् आन-प्राण पुद्गल परिवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? णवर-वेउव्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउब्वियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं वेउव्विय सरीरत्ताए गहियाइंजाव निसिट्ठाई भवंति। सेसंतंचेव। एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे। शवर-आणापाणुपायोग्गाई सव्वदव्वाई आणापाणुत्ताए सव्वं गहियाईजाव निसिट्ठाई भवंति। सेसंतं चेव। -विया. स. १२, उ. ४, सु. ४७-४९ ७१. ओरालियाईसत्तण्हं पोग्गलपरियट्टाणं अप्पाबहुयंप. एएसि णं भंते ! ओरालियपोग्गलपरियट्टाणं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा, २. वइ पोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा, ३. मणपोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा, ४. आणपाणुपोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा, ५. ओरालियपोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा, ६. तेयापोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा, ७. कम्मगपोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा। -विया.स. १२, उ.४, सु. ५४ ७२. ओरालियाइ सत्तहं पोग्गलपरियट्टाणं निव्वत्तणाकाल परूवणंप. ओरालियपोग्गलपरियट्टेणं भंते ! केवइकालस्स __निवत्तिज्जइ? उ. गोयमा ! अणंताहिं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं एवइकालस्स निव्वत्तिज्जइ। एवं वेउव्यियपोग्गलपरियट्टे वि। उ. गौतम ! १. सबसे थोड़े वैक्रिय-पुद्गल परिवर्त हैं। २. (उनसे) वचन-पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ३. (उनसे) मन पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ४. (उनसे) आनप्राण-पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ५. (उनसे) औदारिक-पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ६. (उनसे) तैजस् पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ७. (उनसे) कार्मण पुद्गल परिवर्त अनन्तगुणे हैं। ७२. औदारिकादि सात पुद्गल परावर्तों के निर्वर्तना काल का प्ररूपणप्र. भंते ! औदारिक-पुद्गल परिवर्त कितने काल में निर्वर्तित (निष्पन्न पूर्ण) होता है? उ. गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीकाल में निष्पन्न होता है। इसी प्रकार वैक्रिय-पुद्गल परिवर्त का निष्पत्ति काल जानना चाहिए। इसी प्रकार आन-प्राण पुद्गल परिवर्त पर्यन्त का निष्पत्ति काल जानना चाहिए। औदारिकादि पुद्गल परिवर्त सप्तक के निर्वर्तना काल का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन १. औदारिक पुद्गल-परिवर्त निर्वर्तना (निष्पत्ति) काल, ७३. एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियझे। __-विया. स. १२, उ.४, सु.५०-५२ ओरालियाइपोग्गलपरियट्टसत्तगनिव्वत्तणाकालस्स अप्पाबहुयंप. एयस्सणं भंते ! १. ओरालियपोग्गलपरियट्ट निव्वत्तणाकालस्स,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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