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________________ ( पुद्गल अध्ययन प. भंते! जइ मणमीसापरिणए किं १. सच्चमणमीसापरिणए वा, २. मोसमणमीसापरिणए वा, ३. सच्चामोसमणमीसापरिणए वा, ४. असच्चामोसमणमीसापरिणए वा? उ. गोयमा ! जहा पओगपरिणए तहा मीसापरिणए वि भाणियव्वं निरवसेसं जाव उ. पज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइय-कप्पाईयवेमाणियदेव-पंचिंदिय-कम्मासरीर-मीसापरिणए वा, अपज्जत्त-सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइय-कप्पाईय वेमाणियदेव-पंचिंदिय-कम्मासरीर-मीसापरिणए वा। प. भंते ! जइ वीससापरिणए किं वण्णपरिणए, गंधपरिणए, रसपरिणए, फासपरिणए,संठाणपरिणए? उ. गोयमा ! वण्णपरिणए वा, गंधपरिणए वा, रसपरिणए वा, फासपरिणए वा, संठाणपरिणए वा। प. भंते ! जइ वण्णपरिणए किं कालवनपरिणए जाव सुक्किल्लवण्णपरिणए? - १८१७ ) प्र. भंते ! यदि वह एक द्रव्य मनोमिश्र परिणत होता है तो क्या १. सत्यमनोमिश्र परिणत होता है, २. मृषा मनोमिश्र परिणत होता है, ३. सत्यामृषामनोमिश्र परिणत होता है, ४. असत्यामृषामनोमिश्र परिणत होता है? गौतम ! जिस प्रकार प्रयोग परिणत पुद्गल के सम्बन्ध में कहा उसी प्रकार मिश्र परिणत के सम्बन्ध में भी सब कहना चाहिए। यावत्पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय कार्मण शरीर मिश्र परिणत भी होता है, अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय कार्मण शरीर मिश्र परिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य विश्रसापरिणत (स्वभावपरिणत) होता है तो क्या वह वर्णपरिणत होता है, गंध परिणत होता है, रसपरिणत होता है, स्पर्श परिणत होता है या संस्थान परिणत होता है? उ. गौतम ! वह द्रव्य वर्ण परिणत होता है, गन्ध परिणत होता है, रसपरिणत होता है, स्पर्श परिणत होता है और संस्थान परिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि वह एक द्रव्य वर्ण परिणत होता है तो क्या वह कृष्णवर्णपरिणत होता है यावत् शुक्लवर्ण परिणत होता है? उ. गौतम ! वह द्रव्य कृष्णवर्ण परिणत भी होता है यावत् शुक्लवर्णपरिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि वह एक द्रव्य गंध परिणत होता है तो क्या सुरभिगंध परिणत होता है या दुरभिगंध परिणत होता है? उ. गौतम ! वह सुरभिगंधपरिणत भी होता है और दुरभिगंध परिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य रसपरिणत होता है तो क्या तिक्तरसपरिणत होता है यावत् मधुररस परिणत होता है? उ. गौतम ! वह तिक्तरसपरिणत भी होता है यावत् मधुररस परिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य स्पर्शपरिणत होता है तो क्या कर्कशस्पर्श परिणत होता है यावत् रुक्षस्पर्श परिणत होता है? उ. गौतम ! वह कर्कशस्पर्श परिणत भी होता है यावत् रुक्षस्पर्श परिणत भी होता है। प्र. भंते ! यदि एक द्रव्य संस्थान परिणत होता है तो क्या वह परिमण्डल संस्थान परिणत होता है यावत् आयतसंस्थान परिणत होता है? उ. गौतम ! वह परिमण्डल संस्थान परिणत भी होता है यावत आयत संस्थान परिणत भी होता है। ४६. दो द्रव्यों के प्रयोग परिणतादि का प्ररूपणप्र. भंते ! दो (पुद्गल) द्रव्य क्या प्रयोग परिणत होते हैं, मिश्र परिणत होते हैं या विश्रसा परिणत होते हैं ? उ. गौतम ! वे १. प्रयोग परिणत होते हैं, उ. गोयमा ! कालवण्णपरिणए वा जाव सुक्किल्लवण्णपरिणए वा। प. भंते ! जइ गंधपरिणए किं सुब्भिगंधपरिणए, दुब्भिगंधपरिणए? उ. गोयमा ! सुब्भिगंधपरिणए वा, दुब्भिगंधपरिणए वा। प. भंते ! जइ रसपरिणए किं तित्तरसपरिणए जाव महुररसपरिणए? उ. गोयमा ! तितरसपरिणए वा जाव महुररसपरिणए वा। प. भंते ! जइ फासपरिणए किं कक्खडफासपरिणए जाव लुक्खफासपरिणए? उ. गोयमा ! कक्खडफासपरिणए वा जाव लुक्खफास परिणए वा। प. भंते ! जइ संठाणपरिणए किं परिमंडलसंठाणपरिणए जाव आययसंठाणपरिणए? उ. गोयमा ! परिमंडलसंठाणपरिणए वा जाव आययसंठाणपरिणए वा। -विया. स.८, उ. १, सु. ४९-७९ ४६. दोण्हं दव्वाणं पयोगपरिणयाइ परूवणंप. दो भंते ! दव्वा किं पओगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया? उ. गोयमा ! १.पओगपरिणया वा,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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