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________________ द्रव्यानुयोग-(३) इसी प्रकार गर्भज चतुष्पद स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गलों का भी कथन करना चाहिए। इसी प्रकार यावत् सम्मूर्छिम खेचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत और गर्भज खेचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गलों का कथन भी करना चाहिए। इनके अपर्याप्त और पर्याप्त दो-दो भेद भी कहने चाहिए। प्र. भंते ! सम्मूर्छिम-मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! वह (पुद्गल) एक प्रकार का कहा गया है, यथा अपर्याप्त सम्मूर्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल। प्र. भंते ! गर्भजमनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत-पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. पर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल, २. अपर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल। १८०६ एवं गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियपओगपरिणया वि, एवं जाव-सम्मुच्छिमखहयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियपओगपरिणया वि, गब्भवक्कंतियखहयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियपओगपरिणया य, एक्केक्के पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्या। . प. सम्मुच्छिममणुस्सपंचिंदियपओगपरिणयाणं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगविहा पण्णत्ता, तं जहा अपज्जत्तगसम्मुच्छिममणुस्सपंचिंदियपओगपरिणया चेव। प. गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियपओगपरिणयाणं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्तग-गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय पओगपरिणया य, २. अपज्जत्तग-गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय पओगपरिणया य, प. असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियपओगपरिणयाणं भंते! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्तग-असुरकुमारभवणवासिदेव-पंचिंदिय पओगपरिणया य, २. अपज्जत्तग-असुरकुमारभवणवासिदेव-पंचिंदिय पओगपरिणया य, एवं जाव-पज्जत्तग-थणियकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियपओगपरिणया य, अपज्जत्तगथणियकुमारभवणवासिदेव-पंचिंदियपओगपरिणया या एवं एएणं अभिलावेणं दुपएणं भेएणं, पिसाया जाव गंधव्वा, चंदा जाव ताराविमाणा, सोहम्मकप्पोवगा जाव अच्चुओ, हिद्विमहिडिमगेविज्जकप्पाईय जाव उवरिमउवरिमगेविज्जकप्पाईयविजयअणुत्तरोववाइय-कप्पाईयवेमाणियदेव-पंचिंदियपओगपरिणया जाव अपराजियअणुत्तरोववाइय कप्पाईय वेमाणियदेव-पंचिंदियपओगपरिणया। प. सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय कप्पाईय वेमाणियदेव पंचिंदियपओगपरिणयाणं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्तग-सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईय वेमाणियदेवपंचिंदियपओगपरिणया य, प्र. भंते ! असुरकुमार भवनवासीदेव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल, २. अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासीदेव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल। इसी प्रकार यावत् पर्याप्त स्तनितकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल और अपर्याप्त स्तनितकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गलों के लिए जानना चाहिए। इसी प्रकार (पर्याप्त-अपर्याप्त) इन दो भेदों के अभिलाप से, पिशाचों से गंधर्वो पर्यन्त वाणव्यन्तरों के, चन्द्रों से तारा विमानों पर्यन्त ज्योतिष्क देवों के, सौधर्म कल्पोपपन्नकों से अच्युत कल्पोपपन्नकों पर्यन्त, अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक से उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक कल्पातीतों पर्यन्त, विजय अनुत्तरोपपातिक से अपराजित अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों पर्यन्त प्रयोग परिणत पुद्गलों के लिए जानना चाहिए। प्र. भंते ! सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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