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________________ १८०१ पुद्गल अध्ययन एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ। अहवा-एगयओ असंखेज्जा दुपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिएखंधे भवइ। एवं जावअहवा-एगयओ असंखेज्जा संखेज्जपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ। अहवा-एगयओ असंखेज्जा असंखेज्जपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ। अहवा-असंखेज्जा अणंतपएसिया खंधा भवंति। अणंतहा कज्जमाणेअणंता परमाणुपोग्गला भवंति। -विया. स.१२, उ.४, सु.१-१३ ४१. पोग्गलाणं पडिघाओ तिविहे पोग्गलपडिघाएपण्णत्ते,तं जहा१. परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गले पप्प पडिहम्मेज्जा, एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा-एक ओर असंख्यात द्विप्रदेशी स्कन्ध, एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है, इसी प्रकार यावत्अथवा-एक ओर असंख्यात संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा-एक ओर असंख्यात असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा-असंख्यात अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होते हैं। अनन्त विभाग किये जाने परअनन्त परमाणु- पुद्गल होते हैं। २. लुक्खत्तात्ताए वा पडिहम्मेज्जा, ३. लोगते वा पडिहम्मेज्जा। -ठाणं अ.३, उ.४, सु. २११ ४२. पोग्गलाणं पओगपरिणयाइ भेयतिगं प. कइविहा णं भंते ! पोग्गला पण्णता? उ. गोयमा ! तिविहा पोग्गला पण्णत्ता,तं जहा १. पओगपरिणया, २. मीससापरिणया, ३. वीससापरिणया, -विया, स.८, उ.१,सु.३ ४३. णव दंडगेहिं पओगपरिणयपोग्गलाणं परूवणं पढमो दण्डओप. पओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. एगिंदियपओगपरिणया जाव ५. पंचिंदियपओगपरिणया। प. एगिदियपओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पुढविक्काइय एगिंदियपओगपरिणया जाव ५. वणस्सइकाइय एगिंदिय पओगपरिणया। प. पुढविक्काइयएगिंदियपओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सुहुमपुदविक्काइयएगिदियपओगपरिणया य, २. बायरपुढविक्काइयएगिंदियपओगपरिणया य। ४१. पुद्गलों का प्रतिघात तीन कारणों से पुद्गलों का प्रतिघात कहा गया है, यथा१. एक परमाणु-पुद्गल दूसरे परमाणु-पुद्गल से टकरा कर प्रतिहत होता है। २. रूक्ष स्पर्श से प्रतिहत होता है। ३. लोकान्त में जाकर प्रतिहत होता है। ४२. पुद्गलों के प्रयोग परिणतादि भेदत्रिक प्र. भंते ! पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! पुद्गल तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. प्रयोग-परिणत-जीव द्वारा गृहीत पुद्गल। २. मिश्र-परिणत-प्रयोग और स्वभाव द्वारा परिणत पुद्गल। ३. विनसा-परिणत-स्वभाव से परिणत पुद्गल। ४३. नव दण्डकों द्वारा प्रयोग परिणत पुद्गल का प्ररूपण प्रथम दण्डकप्र. भंते ! प्रयोग-परिणत-पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत यावत् ५. पंचेन्द्रिय-प्रयोग- परिणत। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत यावत् ५. वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत। प्र. भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल, २. बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल। १. ठाणं अ.३,उ.३.सु.१९२
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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