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________________ १७८० २. वट्टा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ३. चउरंसा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ४. तंसा संठाणा दब्बठ्ठयाए संखेज्जगुणा, ५. आयता संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ६. अणित्थंथा संठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा। अणित्यंथेहितो संठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए परिमंडला संठाणा पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, वट्टा संठाणा पएसट्ठयाए संखेज्जगुणा, सोचेव पएसठ्ठयाए गमओभाणियव्वओ जावअणित्थंथा संठाणा पएसठ्ठयाए असंखेज्जगुणा। -वियो. स.२५, उ.३, सु.६ ३०. परिमण्डलाई पंचसंठाणभेयाणं संखेज्जाइपरूवणंप. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता? उ. गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एवं जाव आयता, प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए, अणंतपएसिए? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जपएसिए, सिय असंखेज्जपएसिए, सिय अणंतपएसिए, एवंजाव आयते, द्रव्यानुयोग-(३) २. (उनसे) वृत्त संस्थान द्रव्य की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं, ३.(उनसे) चतुरन संस्थान द्रव्य की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं, ४.(उनसे) त्रिकोण संस्थान द्रव्य की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं, ५.(उनसे) आयत संस्थान द्रव्य की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं, ६.(उनसे) अनियत संस्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा अनियत संस्थानों से प्रदेश की अपेक्षा परिमण्डल संस्थान असंख्यातगुणे हैं। (उनसे) वृत्त-संस्थान प्रदेश की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं। इत्यादि पूर्वोक्त प्रदेश की अपेक्षा का अभिलाप ‘अनियत संस्थान प्रदेश की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं', पर्यन्त कहना चाहिए। ३०. परिमण्डलादि पांच संस्थान भेदों के संख्यातादि का प्ररूपणप्र. भंते ! परिमण्डल संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार आयत संस्थानों पर्यन्त (अनन्त) जानना चाहिए। प्र. भंते ! परिमण्डल संस्थान क्या संख्यातप्रदेशी हैं, असंख्यात प्रदेशी हैं या अनन्तप्रदेशी हैं ? उ. गौतम ! कदाचित् संख्यातप्रदेशी हैं, कदाचित् असंख्यातप्रदेशी हैं और कदाचित् अनन्तप्रदेशी हैं। इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त अनन्त प्रदेशी जानना चाहिए। प्र. भंते ! संख्यातप्रदेशी परिमण्डल संस्थान क्या संख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है या अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है? उ. गौतम ! संख्यातप्रदेशों में अवगाढ होता है, किन्तु असंख्यात प्रदेशों में और अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता है। इसी प्रकार संख्यातप्रदेशी आपतसंस्थान पर्यन्त के प्रदेशावगाढ़ के लिए कहना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यातप्रदेशी परिमण्डल संस्थान क्या संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है या अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है? उ. गौतम ! कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता है। इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी आयत संस्थान पर्यन्त प्रदेशावगाढ़ के विषय में कहना चाहिए। प्र. भंते ! अनन्तप्रदेशी परिमण्डल संस्थान क्या संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है या अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है? उ. गौतम ! कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, (किन्तु) अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता है। प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपएसिए किं संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे, अणंतपएसोगाढे? उ. गोयमा ! संखेज्जपएसोगाढे, नो असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे, एवं जाव आयते, प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपएसिए किं संखेज्जपएसोगाढे,असंखेज्जपएसोगाढे, अणंतपएसोगाढे ? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे, सिय असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढ़े, एवंजाव आयते, प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए किं संखेज्जपएसोगाढे, असंखेज्जपएसोगाढे, अणंतपएसोगाढे ? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे, सिय असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे, १. विया.स.२५,उ.३,सु.७-१०.
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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