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द्रव्यानुयोग-(३) द्विप्रदेशिक, चतुःप्रदेशिक आदि सम संख्या वाले स्कन्ध सार्द्ध, अमध्य और सप्रदेश हैं जबकि त्रिप्रदेशिक, पञ्चप्रदेशिक आदि विषम संख्या वाले स्कन्ध अनर्ध, समध्य और सप्रदेश हैं। संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कदाचित् सार्ध अमध्य और सप्रदेश हैं तो कदाचित् अनर्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं। जिसके दो बराबर भाग हो जाएँ एवं मध्य में कुछ न बचे वह सार्ध एवं अमध्य कहलाता है तथा जिसके दो बराबर भाग न हों अपितु भाग करने पर मध्य में कुछ बच जाए उसे अनर्द्ध एवं समध्य कहते हैं।
एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल को स्पर्श करता हुआ सर्व से सर्व को स्पर्श करता है अर्थात् सम्पूर्ण रूप से स्पर्श करता है। द्विप्रदेशिक स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ परमाणु पुद्गल सर्व से एक देश का तथा सर्व से सर्व का स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ परमाणु सर्व से एक देश को स्पर्श करता है, सर्व से बहुत देशों को स्पर्श करता है अथवा सर्व से सर्व को स्पर्श करता है। द्विप्रदेशिक आदि स्कन्ध जब परमाणु को स्पर्श करते हैं तो इनके भिन्न-भिन्न विकल्प बनते हैं। इसी प्रकार ये परस्पर द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों को किस प्रकार स्पर्श करते हैं इसके अनेक विकल्प बनते हैं। वायुकाय से इनके स्पर्श का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि परमाणु पुद्गल से लेकर असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट हैं किन्तु वायुकाय इनसे स्पृष्ट नहीं है। अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट हैं और वायुकाय अनन्तप्रदेशी स्कन्धों से कदाचित् स्पृष्ट है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं है।
पुद्गल के सकम्प एवं निष्कम्प रहने की चर्चा भी इस अध्ययन में उभरी है। परमाणु पुद्गल कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है। जब वह सकम्प होता है तब सर्वसकम्प होता है देश (अंशतः) सकम्प नहीं होता। द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् देशकम्पक होते हैं, कदाचित् सर्वकम्पक होते हैं और कदाचित् निष्कम्पक होते हैं। सकम्पकता में कांपना, चलना, फड़कना, मिलना, क्षुभित होना, उदीरित होना या उस भाव में परिणत होना सम्मिलित है। परमाणु पुद्गल यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अपने स्वभाव में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है। एक प्रदेशावगाढ़ यावत् असंख्यात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल स्वस्थान में या अन्य स्थान में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक रहता है। एक प्रदेशावगाढ़ यावत् असंख्यात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल काल की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्प रहता है। एक गुण काला पुद्गल यावत् अनन्तगुण काला पुद्गल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है। शब्द परिणत पुद्गल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात भाग तक शब्द परिणत रहता है। परमाणु पुद्गल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक सकम्प रहता है। वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्प रहता है। द्विप्रदेशिक से अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक देशकम्पक या सर्वकम्पक रहता है, उसकी निष्कम्पकता परमाणु की भाँति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहती है। सर्वकम्पकता, देशकम्पकता एवं निष्कम्पकता के आधार पर जघन्य एवं उत्कृष्ट अन्तरकाल का भी इस प्रसंग में निरूपण हुआ है।
अल्प-बहुत्व की दृष्टि से सर्वकम्पक परमाणु पुद्गल सबसे अल्प हैं, उनसे निष्कम्पक परमाणु-पुद्गल असंख्यातगुणे हैं। द्विप्रदेशिक स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों तक सर्वकम्पक सबसे अल्प, उनसे देशकम्पक असंख्यातगुणे तथा निष्कम्पक असंख्यातगुणे हैं। अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों में सर्वकम्पक सबसे अल्प हैं, निष्कम्पक उनसे अनन्तगुणे हैं तथा देशकम्पक उनसे अनन्तगुणे हैं। परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में तुलना करने पर सर्वकम्पक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प हैं तथा निष्कम्पक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध सबसे अधिक हैं।
सबसे अल्प अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं, उनसे परमाणु पुद्गल अनन्तगुणे हैं, उनसे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध संख्यातगुणे हैं और उनसे असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगुणे हैं। क्षेत्र की अपेक्षा एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल सबसे अल्प हैं उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल संख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल असंख्यातगुणे हैं। काल की अपेक्षा भी अल्प-बहुत्व का वही कथन है जो अवगाहना का है।
वस्तु स्वरूप की अपेक्षा सत् एवं पररूप की अपेक्षा असत् होती है। यह सिद्धान्त परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों तक लागू होता है। सत् एवं असत् के आधार पर अनेक भंग बन जाते हैं। सप्तभंगी नय का भी यही आधार है। ___ अन्यतीर्थिकों के मत में दो परमाणु पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते हैं जबकि जैनागम के अनुसार दो परमाणु पुद्गल एक साथ चिपक जाते हैं क्योंकि उनमें चिकनापन (स्निग्धता) होती है। तीन परमाणु पुद्गल आदि भी इसी प्रकार चिपकते हैं। ये चिपक कर स्कन्ध बन जाते हैं। स्कन्ध के चार प्रकार कहे गए हैं-१. नाम स्कन्ध, २. स्थापना स्कन्ध, ३. द्रव्य स्कन्ध और ४. भाव स्कन्धा द्रव्य स्कन्ध के दो भेद होते हैं-१. आगम से द्रव्य स्कन्ध और २.नो आगम से द्रव्य स्कन्धा भाव स्कन्ध भी दो प्रकार का होता है-१. आगम भाव स्कन्ध और २. नो आगम भाव स्कन्ध।
उत्तराध्ययन सूत्र में शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श को पुद्गल के लक्षण कहा गया है। एकत्व, पृथक्त्व, भिन्नत्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग को पुद्गल की पर्यायों का लक्षण कहा है। शब्द की उत्पत्ति दो कारणों से होती है-१. पुद्गलों का संघात एकत्रित होने पर तथा २. पुद्गलों का भेद होने पर।
प्रस्तुत अध्ययन में परमाणु-पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा से विविध प्रकार से विचार हुआ है जिनमें कृतयुग्म, योज, द्वापरयुग्म और कल्योज की दृष्टि से किया गया विचार भी मुख्य है। परिमण्डल आदि संस्थानों (आकारों) का भी इस अध्ययन में विस्तार से विचार हुआ है, जो कई दृष्टियों से महत्त्व का है। संस्थानों में भी कृतयुग्मादि का विचार किया गया है। शब्द के पुद्गल होने के विषय में भी ऊहापोह हुआ है।
इस प्रकार जैनदर्शन में पुद्गल का क्या स्वरूप है तथा परमाणु का क्या स्वरूप है इसे समझने के लिए यह अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।