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________________ १७१६ द्रव्यानुयोग-(३) ६. चरिमंतपएसा य, अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, एवं वट्ट-तंस-चउरंस-आयएसुवि जोएअव्वं, प. परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स, अचरिमस्स य, चरिमाण य, चरिमंतपएसाण य,अचरिमंतपएसाण य, दव्वट्ठयाए, पएसट्ठयाए, दव्वट्ठपएसठ्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! दव्वट्ठयाए१. सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्ज पएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे। २. चरिमाई संखेज्जगुणाई, ३. अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं, ६. (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार वृत्त, त्र्यंस, चतुरंस और आयत संस्थान के लिए कहना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान के(एकवचन वाला) अचरम, (बहुवचन वाला) चरम, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्त प्रदेशों में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा१. असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान का (एकवचन वाला) अचरम सबसे अल्प है, पएसट्टयाए१. सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्ज पएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स चरिमंतपएसा, २. अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा, ३. चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, दव्वट्ठपएसट्टयाए१. सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, २. चरिमाइं संखेज्जगुणाई, ३. अचरिमं च चरिमाणि- य दो वि विसेसाहियाई ___ चरिमंतपएसा संखेज्जगुणा, ४. चरिमंतपएसा संखेज्जगुणा, ५. अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा, ६. चरिमंतपएसा य, अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, एवं वट्ट-तंस-चउरंस-आयएसु वि जोएअव्वं। २. (उनसे) (बहुवचन वाले) चरम संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) (एकवचन वाला) अचरम और (बहुवचन वाला) चरम ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा१. असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान - के चरमान्तप्रदेश सबसे कम हैं, २. (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणें हैं, ३. (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा१. असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डलसंस्थान ' का (एकवचन गला) अचरम सबसे कम है, प. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स, अचरिमस्स य, चरिमाण य, चरिमंतपएसाण य,अचरिमंतपएसाण य, दव्वट्ठयाए, पएसट्ठयाए, दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! दव्वट्ठयाए१. सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्ज पएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, २. (उनसे)(बहुवचन वाले) चरम संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) (एकवचन वाला) अचरम और (बहुवचन वाला) चरम ये दोनों विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) चरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, ५. (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, ६. (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्त प्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार वृत्त, त्र्यंस, चतुरंस और आयत संस्थान के लिए कहना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान का (एकवचन वाला) अचरम और (बहुवचन वाला) चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्त प्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य एवं प्रदेशों की अपेक्षा कौन किनमें अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा१. असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ परिमंडल संस्थान का (एकवचन वाला) अचरम सबसे अल्प है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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