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________________ १६८५ ) इसी प्रकार अनागत में भी एक ही होगा। प्र. दं.१. भंते ! नारकों के कितने वेदनासमुद्घात व्यतीत हुए है ? समुद्घात अध्ययन एवं पुरेक्खडा वि। प. दं. १. णेरइयाणं भंते ! केवइया वेयणासमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा !अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! अणंता। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव तेजस्समुग्घाए। एवं एए वि पंच चउवीसा दंडगा। उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! वे भी अनन्त होंगे। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। इसी प्रकार तैजस्समुद्घात पर्यन्त जानना चाहिए। इसी प्रकार इन पाँचों समुद्घातों का कथन चौवीसों दण्डकों में करना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! नारकों के आहारकसमुद्घात कितने व्यतीत प. दं. १. णेरइयाणं भंते ! केवइया आहारगसमुग्धाया अतीता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! असंखेज्जा। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियाणं। णवर-१६ वणस्सइकाइयाणं, २१ मणूसाण य इम णाणत्तं। प. दं. १६. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइया आहारग समुग्धाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. दं. २१. मणुसाणं भंते ! केवइया आहारगसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा। एवं पुरेक्खडा वि। उ. गौतम ! असंख्यात हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं? उ. गौतम ! वे भी असंख्यात होने वाले हैं। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-१६. वनस्पतिकायिकों और २१. मनुष्यों में यह भिन्नता है। प्र. दं. १६. भंते ! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने आहारकसमुद्घात व्यतीत हुए हैं? उ. गौतम !(उनके) अनन्त व्यतीत हुए हैं। प्र. द.२१. भंते ! मनुष्यों के अतीत में कितने आहारकसमुद्घात प. दं. १. णेरइयाणं भंते ! केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! णत्थि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! असंखेज्जा। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं-५६. वपस्सइकाइयाणं, २१. मणूसाणय इमं णाणत्तं। प. दं. १६. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइया केवलि समुग्घाया अतीता? उ. गोयमा !णत्थि। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! अणंता। प. दं. २१. मणूसाणं भंते ! केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! सिय अत्थि, सिय णत्थि। जइ अत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं। उ. गौतम ! कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हुए हैं। इसी प्रकार भविष्य के (आहारकसमुद्घातों का भी कथन करना चाहिए।) प्र. द. १. भंते ! नारकों के अतीत में केवलिसमुद्घात कितने हुए हैं? उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! वे असंख्यात होने वाले हैं। . दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-१६. वनस्पतिकायिकों और २१. मनुष्यों में यह अन्तर हैप्र. दं.१६.भंते ! अतीत में वनस्पतिकायिकों के केवलिसमुद्घात कितने हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं ? उ. गौतम ! वे अनन्त होने वाले हैं। प्र. दं. २१. भंते ! मनुष्यों के अतीत में केवलिसमुद्घात कितने उ. गौतम ! कदाचित् हुए हैं और कदाचित् नहीं हुए हैं। यदि हुए हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व हुए हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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