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________________ १६७६ द्रव्यानुयोग-(३) ४. आयाहिं सद्दाईणं अणुभूइठाण पख्वणं दोहिं ठाणेहिं आया सद्दाई सुणेइ,तं जहा१. देसेण वि आया सद्दाई सुणेइ, २. सव्वेण वि आया सद्दाइं सुणेइ। दोहिं ठाणेहिं आया रूवाइं पासइ,तं जहा१. देसेण वि आया रूवाइं पासइ, २. सव्वेण वि आया रूवाई पासइ। दोहिं ठाणेहिं आया गंधाइं अग्घाइ,तं जहा१. देसेण वि आया गंधाइं अग्घाइ, २. सव्वेण वि आया गंधाइं अग्घाइ। दोहिं ठाणेहिं आया रसाइं आसादेइ,तं जहा१. देसेण वि आया रसाइं आसादेइ, २. सव्वेण वि आया रसाइं आसादेइ। दोहिं ठाणेहिं आया फासाइं पडिसंवेदेइ,तं जहा१. देसेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेइ, २. सव्वेण वि आया फासाई पडिसंवेदेइ। दोहिं ठाणेहिं आया ओभासइ,तं जहा१. देसेण वि आया ओभासइ, २. सव्वेण वि आया ओभासइ। एवं पभासइ, विकुव्वइ, परियारेइ, भासं भासइ, आहारेइ, परिणामेइ, वेदेइ,णिज्जरेइ। -ठाणं. अ.२, उ. २, सु.७१ ५. पाणाइवायाईसु पवट्टमाण जीव-जीवायासु एगत्त परूवणं- ४. आत्मा द्वारा शब्दों के अनुभूति स्थान का प्ररूपण दो प्रकार से आत्मा शब्दों को सुनता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा शब्दों को सुनता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा शब्दों को सुनता है। दो प्रकार से आत्मा रूपों को देखता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा रूपों को देखता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा रूपों को देखता है। दो प्रकार से आत्मा गंधों को सूंघता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा गंधों को सूंघता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा गंधों को सूंघता है। दो प्रकार से आत्मा रसों का आस्वाद लेता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा रसों का आस्वाद लेता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा रसों का आस्वाद लेता है। दो प्रकार से आत्मा स्पर्शों का अनुभव करता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा स्पर्शों को अनुभव करता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा स्पर्शों को अनुभव करता है। दो प्रकार से आत्मा अवभास करता है, यथा१. शरीर के एक भाग से भी आत्मा अवभास करता है। २. समस्त शरीर से भी आत्मा अवभास करता है। इसी प्रकार प्रभास, विक्रिया, परिचारणा, भाषा बोलना, आहार, परिणमन, वेदन और निर्जरा करता है। ५. प्राणातिपातादि में प्रवर्तमान जीवों और जीवात्माओं में एकत्व का प्ररूपणप्र. भन्ते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। प्राणातिपातविरमण यावत् परिग्रहविरमण में, क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। औत्पत्तिकी बुद्धि यावत् पारिणामिकी बुद्धि में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। उत्थान यावत् पराक्रम में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव रूप में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और उससे जीवात्मा पृथक् है। ज्ञानावरणीय कर्म यावत् अन्तराय कर्म में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा पृथक् है। इसी प्रकार कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या में, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि में, चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन में, आभिनिबोधिक ज्ञान यावत् केवलज्ञान में, प. अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति एवं खलु पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छा-दंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया। उप्पत्तियाए जाव पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उग्गहे, ईहा, अवाए, धारणाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उठाणे जाव परक्कमे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नेरइयत्ते, तिरिक्ख मणुस्सदेवत्ते वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। एवं कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए, सम्मदिट्ठीए, मिच्छदिट्ठीए, सम्ममिच्छदिट्ठीए, चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे, आभिणिबोहियनाणे जाव केवलनाणे,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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