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________________ आत्मा अध्ययन सूत्र ४२. आया- अज्झयणं १. दव्वट्ठयाए आया एगे आया। - ठाणं. अ. १, सु. २ २. जीव - चउवीसदंडएसु नाण दंसणं पडुच्च आय सरूव परूवणं प. आया भंते! नाणे, अन्ने नाणे ? उ. गोयमा ! आया सिय नाणे, सिय अन्नाणे, नाणे पुण नियमं आया । प. दं. १ आया भंते! नेरइयाणं नाणे, अन्ने नेरइयाणं नाणे ? उ. गोयमा ! आया नेरइयाणं सिय नाणे, सिय अन्नाणे, नाणे पुण से नियमं आया। दं. २- ११. एवं जाव थणियकुमाराणं । प आया भंते! पुढविकाइयाणं अन्नाणे, अन्ने पुढविकाइयाणं अन्नाणे ? उ. गोयमा ! आया पुढविकाइयाणं नियम अन्नाणे, अन्नाणे विनियमं आया। दं. १२-१६. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं । दं. १७-२४. बेइदिय तेइदिय जाव वैमाणियाणं जहा नेरइयाणं । प. आया भंते! दंसणे, अन्ने दंसणे ? उ. गोयमा ! आया नियम दंसणे, दंसणे वि नियमं आया। प. दं. १ आया भंते! नेरइयाणं दंसणे, अन्ने नेरइयाणं दंसणे ? उ. गोयमा ! आया नेरइयाणं नियमं दंसणे, दंसणे वि से नियमं आया। दं. २-२४. एवं जाव बेमाणियाणं निरंतर दंड ओ । ३. आयाणं अट्ठवित्त परूवणं - विया. स. १२, उ.१०, सु. १०-१८ प. कइविहा णं भंते ! आया पन्नत्ता ? उ. गोयमा ! अट्ठविहा आया पन्नत्ता, तं जहा १. दवियाया, ३. जोगाया, ५. णाणाया, ७ चरिताया, - २. कसायाया, ४. उवयोगाया, ६. दंसणाया ८. वीरियाया । - विया. स. १२, उ. १०, सु. १ सूत्र ४२. आत्मा अध्ययन १. द्रव्य की अपेक्षा आत्माआत्मा एक है। २. जीव - चौबीसदंडकों में ज्ञान दर्शन की अपेक्षा आत्म स्वरूप का प्ररूपण प्र. भन्ते ! आत्मा ज्ञानरूप है या ज्ञान अन्य रूप है ? उ. गौतम ! आत्मा कदाचित् ज्ञानरूप है, कदाचित् अज्ञानरूप है किन्तु ज्ञान नियमतः आत्मारूप है। प्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिकों की आत्मा ज्ञानरूप है या नैरयिकों का ज्ञान अन्य रूप है ? उ. गौतम ! नैरयिकों की आत्मा कथंचित् ज्ञानरूप है, कथंचित् अज्ञानरूप है, किन्तु उनका ज्ञान नियमतः (अवश्य ही ) आत्मरूप है। प्र. उ. १६७५ ६. २ ११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा अज्ञानरूप है या पृथ्वीकायिकों का अज्ञान अन्य रूप है ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों की आत्मा नियमतः अज्ञान रूप है और उनका अज्ञान भी नियमतः आत्मरूप है। दं. १२-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना चाहिए। दं. १७-२४. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय से वैमानिकों पर्यन्त के जीवो . का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। भन्ते ! आत्मा दर्शनरूप है या दर्शन अन्य रूप है ? गौतम ! आत्मा नियमतः दर्शनरूप है और दर्शन भी नियमतः आत्मरूप है। प्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिकों की आत्मा दर्शनरूप है या नैरयिक जीवों का दर्शन अन्य रूप है ? उ. गौतम ! नैरयिक जीवों की आत्मा नियमतः दर्शनरूप है और उनका दर्शन भी नियमतः आत्मरूप है। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डकों के लिए कहना चाहिए। ३. आत्मा के आठ प्रकारों का प्ररूपण प्र. भन्ते ! आत्मा कितने प्रकार की कही गई है ? उ. गौतम ! आत्मा आठ प्रकार की कही गई हैं, यथा २. कषायात्मा, १. द्रव्यात्मा, ३. योग-आत्मा, ४. उपयोग आत्मा, ६. दर्शन-आत्मा, ८. वीर्यात्मा। ५. ज्ञान- आत्मा, ७. चारित्र-आत्मा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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