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________________ गम्मा अध्ययन कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं वासपुहत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई,एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (पढम गमओ) सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, एसा चेव पढम गमग सरिसा वत्तब्वया। १६७३ कालादेश से जघन्य दो वर्ष पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) णवरं-ओगाहणा रयणिपुहत्तं ठिई-वासपुहत्तं। संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। (बिइओ गमओ चउत्थो गमओ) सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ, एसा चेव पढम गमग वत्तव्वया, णवरं-ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई। ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (तइओ गमओ सत्तमो गमओ) सव्वट्ठसिद्धगदेवे उववज्जमाणाणं मणुस्साणं एए तिण्णि पढम चउत्थ सत्तम गमगा भवंति। सेसा छ गमगा न भवंति। -विया.स.२४, उ. २४,सु. २४-२९ यदि वह (संज्ञी मनुष्य) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और सर्वार्थसिद्धदेवों में उत्पन्न हो तो उसका भी कथन प्रथम गमक के समान करना चाहिए। विशेष-इनकी अवगाहना रलि पृथक्त्व (अनेक हाथ) है और स्थिति वर्ष पृथक्त्व (अनेक वर्ष) है। संवेध (इनका अपना) उपयोगपूर्वक जानना चाहिए। (यह द्वितीय गमक है अर्थात् चौथा गमक है।) वही (संज्ञी मनुष्य) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो तो उसका भी कथन प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-इसकी अवगाहना जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट भी पांच सौ धनुष है। इसकी स्थिति अनुबंध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष है उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष है। कालादेश से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तीसरा गमक है अर्थात् सातवाँ गमक है) सर्वार्थसिद्ध देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के ये तीन ही गमक होते हैं-पहला, चौथा और सातवाँ। शेष छः गमक नहीं होते हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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