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________________ १६६८ जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणस्सेहिंतो उववज्जंति, संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा। णवरं-जोइसिय ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। (१-९) -विया. स. २४, उ. २३, सु. १०-१२ ७१. सोहम्मगदेवेसु उववज्जतेसु सन्नि पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. सोहम्मगदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति-किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! भेदो जहा जोइसियउद्देसए। प. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सोहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए,से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमट्ठिईएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्जमाणस्स भणियंतहा भाणियव्वं। णवर-सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अण्णाणी वि, दो नाणा, दो अण्णाणा नियम। द्रव्यानुयोग-(३) वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य से आकर उत्पन्न होता है तो असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों के गमकों के समान यहाँ भी नौ गमक कहने चाहिए। विशेष-ज्योतिष्क देवों की स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक जानना चाहिए (१-९) ७१. सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! सौधर्म देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! ज्योतिष्क उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जो सौधर्म देवों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इसका शेष कथन ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले के समान करना चाहिए। विशेष-वे सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होते हैं किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते। वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं, उनमें दो ज्ञान और दो अज्ञान नियमतः होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है। कालादेश से जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट छह पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) वही (असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में प्रथम गमक के अनुसार कथन करना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह दूसरा गमक है) वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न हो तो जघन्य तीन पल्योपम और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देवों में उत्पन्न होता है। शेष कथन प्रथम गमक के अनुसार है। विशेष-स्थिति जघन्य तीन पल्योपम की और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की होती है। कालादेश से जघन्य छह पल्योपम और उत्कृष्ट भी छह पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है) ठिई जहण्णेणं एगं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं छप्पलिओवमाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा (पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो, एसा चेव वत्तव्वया पढम गमग सरिसा, णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं तिपलिओवमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा। सेसा क्तव्वया पढम गमग सरिसा। णवरं-ठिई जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाई। कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाई, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(तइओ गमओ)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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