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________________ गम्मा अध्ययन १६६७ सो चेव अप्पणा उक्कोसकालटिईओ जाओ, सा चेव पढम गमग वत्तव्वया भाणियव्वा। णवरं-ठिई जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाई, एवं अणुबंधो वि। एवं एए उक्कोसठिईया पच्छिमा तिण्णि गमगा नेयव्वा, णवर-ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा (७-९) (एए सत्त गमगा।) प. भंते ! जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख जोणिया उववज्जति-किं पज्जत संखेज्ज वासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति? अपज्जत्त संखेज्ज वासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेव नव विगमा भाणियव्या। णवर-जोइसिय-ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। (१-९) -विया. स.२४, उ.२३, सु. १-९ ७०. जोइसिय उववज्जतेसु मणुस्साणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति-किं सण्णि मणुस्सेहितो उववज्जति, असण्णि मणुस्सेहिंतो उववज्जति? वही (असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और ज्योतिष्कों में उत्पन्न हो तो प्रथम गमक के समान कथन करना चाहिए। विशेष-स्थिति जघन्य तीन पल्योपम की और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम की है। अनुबंध भी इतना ही होता है। इसी प्रकार ये उत्कृष्ट स्थिति के अन्तिम तीन गमक (७-८-९) जानने चाहिए। विशेष-स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक भिन्न-भिन्न जानने चाहिए। (ये कुल सात गमक हुए।) प्र. यदि वह (ज्योतिष्क देव) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च से आकर उत्पन्न होता हो तो क्या पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च से आकर उत्पन्न होता है या अपर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च से आकर उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! यहां असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के समान नौ ही गमक जानने चाहिए। विशेष-ज्योतिष्क की स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक भिन्न-भिन्न जानना चाहिए।(१-९) ७०. ज्योतिष्कों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! यदि वे ज्योतिष्क देव मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भंते ! यदि संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो संख्यात वर्षायुष्क या असंख्यात वर्षायुष्क मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! दोनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य जो ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार ज्योतिष्कों में उत्पन्न होने वाले असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के सात गमक कहे गये हैं, उसी प्रकार मनुष्य के भी सात गमक कहने चाहिए। विशेष-अवगाहना में विशेषता है-आदि के तीन गमकों में अवगाहना जघन्य कुछ अधिक नौ सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाउ है। मध्य के (चौथे) गमक में जघन्य कुछ अधिक नौ सौ धनुष और उत्कृष्ट भी कुछ अधिक नौ सौ धनुष होती है। अन्तिम तीन गमकों में जघन्य तीन गाउ और उत्कृष्ट भी तीन गाउ होती है। स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक जानना चाहिए। उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहिंतो उववजंति, नो असण्णि मणुस्सेहिंतो उवज्जति। प. भंते ! जइ सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति-किं संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय सण्णि मणुस्सेहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! दोहिं वि उववज्जति। प. असंखेज्जवासाउयसण्णिमणस्से णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहा असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियस्स तिरिक्खजोणियस्स जोइसिएसु चेव उववज्जमाणस्स सत्त गमगा भणिया तहेव मणुस्साण विभाणियव्वा, णवरं-ओगाहणाविसेसो-पढमेसु तिसु गमएसु, ओगाहणा जहण्णेणं साइरेगाइं नव धणुसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। मज्झिमगमए (चउत्थ गमए) जहण्णेणं साइरेगाई नव धणुसयाई, उक्कोसेण वि साइरेगाई नव धणुसयाई। पच्छिमेसु तिसु गमएसु जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाइं। ठिई संवेहं च उवउंजिऊण भाणियव्वं (१-९)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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