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________________ गम्मा अध्ययन १६५७ प्र. भन्ते ! वाणव्यन्तर देव जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! असुरकुमारों के समान समग्र कथन करना चाहिए। विशेष-स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक जानना चाहिए। प. वाणमंतरे णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएस उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं सरिसा सव्वा वत्तव्वया भाणियव्वा। णवरं-ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा (१-११) -विया. स. २४, उ.२०,सु.५६-५७ ५९. पंचिंदियतिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु जोइसिय देवाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते !जइ जोइसिय देवेहिंतो उववज्जति-किं चंदविमाण जोइसिय देवेहिंतो उववज्जति जाव ताराविमाण जोइसिय देवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! चंदविमाण जोइसिय देवेहितो वि उववज्जति जाव ताराविमाण जोइसिय देवेहितो वि उववज्जति। प. जोइसिए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएस उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएस उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहा एयस्स चेव पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स वत्तव्वया भणिया सा चेव सव्या भाणियव्या। णवर-भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चउहिं पलिओवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं, चउहि य वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं नवसु वि गमएसुभाणियव्वा। णवरं-ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा (१-९) -विया.स.२४, उ. २०,सु.५८-६० ६०. वेमाणिय देवे पडुच्च पंचिंदियतिरिक्खजोणिए उववाय परूवणंप. भंते ! जइ वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति-किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति, कप्पातीय वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति? ५९. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले ज्योतिष्क देवों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या चन्द्रविमान ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! चन्द्रविमान ज्योतिष्क देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान ज्योतिष्क देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते ! ज्योतिष्क देव जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले ज्योतिष्क देवों के कथन के अनुसार ही समग्र कथन करना चाहिए। विशेष-भवादेश से जघन्य दो भव, उत्कृष्ट आठ भव जानना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि और चार लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार नौ ही गमकों के विषय में जानना चाहिए। विशेष-स्थिति और संवेध उपयोग लगाकर जानना चाहिए। उ. गोयमा ! कप्पोवगवेमाणिय देवेहिंतो उववजंति, नो कप्पातीयवेमाणिय देवेहिंतो उववज्जति। प. भंते ! जइ कप्पोवग वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जति-किं सोहम्मकप्पोवग वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जति जाव अच्चुय कप्पोवग वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जति? ६०. वैमानिक देवों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपात का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं या कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भन्ते ! यदि वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या सौधर्म कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् अच्युत कल्प वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे सौधर्म कल्पोपपन्न देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं यावत सहस्रार कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु आनत यावत् अच्युत कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। उ. गोयमा ! सोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतोवि उववज्जति जाव सहस्सारकप्पोवग वेमाणियदेवेहितो वि उववज्जंति, नो आणय जाव नो अच्चूयकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जंति। -विया.स. २४,उ. २०, सु. ६१-६२
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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