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________________ १६४३ गम्मा अध्ययन प. वाणमंतरदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एएसिपिअसुरकुमारगमगसरिसा नव गमगाणं लद्धी भाणियव्वा। णवरं-ठिई-जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं उववाय-कायसंवेहं च उवउंजिऊण भाणियव्वं। (१-९) -विया. स. २४, उ. १२, सु. ४८-४९ ४१. पुढविकाइए उववज्जतेसु जोइसिय देवाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ जोइसियदेवेहिंतो उववजंति-किं चंदविमाण जोइसियदेवेहिंतो उववज्जंति जाव ताराविमाणजोइसियदेवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! चंदविमाणजोइसियदेवेहितो वि उववजंति जाव ताराविमाण जोइसियदेवेहिंतो वि उववज्जंति। प. जोइसियदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिइएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सव्वा लद्धी जहा असुरकुमाराणं, णवर-एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता। तिण्णि नाणा, तिण्णि अण्णाणा नियम। ठिई जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। एवं अणुबंधो वि। पढमगमए-कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम अंतोमुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्सेणं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। प्र. भन्ते ! जो वाणव्यन्तर देव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! इनके भी नौ गमकों का वर्णन असुरकुमारों के नी गमकों के समान कहना चाहिए। विशेष-इनकी स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक पल्योपम की होती है। उपपात और काय संवेध उपयोग लगाकर जानना चाहिए।(१-९) ४१. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले ज्योतिष्क देवों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे चन्द्रविमान-ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे चन्द्रविमान-ज्योतिष्क देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान-ज्योतिष्क देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते ! ज्योतिष्क देव जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! समग्र कथन असुरकुमारों के समान जानना चाहिए। विशेष-इनके एक मात्र तेजोलेश्या कही गई है। इनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियमतः होते हैं। स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है। अनुबंध भी स्थिति के अनुसार जानना चाहिए। प्रथम गमक में-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक एक लाख वर्ष सहित एक पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक भी असुरकुमार के समान कहने चाहिए। विशेष-स्थिति, कालादेश, उपपात एवं अन्तर उपयोग पूर्वक समझना चाहिए। (१-९) ४२. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले वैमानिक देवों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं या कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। एवं सेसा वि अट्ठगमगा असुरकुमार सरिसा भाणियव्वा, णवरं-ठिई, कालादेसं उववायं, णाणत्तं च उवउंजिऊण भाणियव्वा।(१-९) -विया. स. २४, उ. १२, सु.५०-५१ ४२. पुढविकाइए उववज्जंतेसु वेमाणिय देवाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति-किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति, कप्पातीयवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति, नो कप्पातीयवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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