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________________ १६३४ द्रव्यानुयोग-(३) शेष चार गम्मों में कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट असंख्यात वर्ष काल जितना समय व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (१-९) चउसु गमएसु-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा ॥१-९॥ -विया. स. २४, उ. १२, सु. १३-१४ २६. पुढविकाइए उववज्जतेसु तेउक्काइयाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंतेउक्काइयाण वि एसा चेव आउकाइय वत्तव्यया, णवरं-नवसु वि गमएसु तिण्णि लेस्साओ। सुईकलावसंठिया। ठिई उक्कोसेणं तिण्णि अहोरत्ताई। तइय गमए-कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीई वाससहस्साई बारसहिं राइंदिएहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं संवेहो नवसु गमएसु उवउंजिऊण भाणियव्यो (१-९) -विया. स. २४, उ.१२, सु.१५ २७. पुढविकाइए उववज्जतेसु वाउकाइयाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंवाउक्काइयाण वि एवं चेव नव गमगा जहेव तेउक्काइयाणं, णवर-पडाग संठाण संठिया पण्णत्ता। ठिई-तिण्णि वाससहस्साई, तइय गमए-कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसंवाससहस्साई अंतोमुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं एग वाससयसहस्सं एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं कायसंवेहो नवसु गमएसु उवउंजिऊण भाणियव्यो। -विया. स. २४, उ. १२, सु. १६ २८. पुढविकाइए उववज्जतेसु वणस्सइकाइयाणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंआउकाइयगमगसरिसा वणस्सइकाइयाणं नव गमगा भाणियव्या, णवरं-नाणा संठाण संठिया। सरीरोगाहणा पढमएसु पच्छिल्लएसु य तिसु-तिसु गमएसु जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं, मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं, ठिई-उक्कोसेणं दसवाससहस्साई। तइय गमए-कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसुत्तर वाससयसहस्सं, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं काय संवेहो उवउंजिऊण भाणियव्यो।(१-९) -विया.स.२४, उ.१२,सु.१७ २६. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले तेजस्कायिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणतेजस्कायिकों का संपूर्ण कथन अकायिकों के समान है। विशेष-नौ ही गमकों में तीन लेश्याएँ होती हैं। तेजस्काय का संस्थान सूचीकलाप (सूइयों के ढेर) के समान होता है। स्थिति उत्कृष्ट तीन अहोरात्र की है। तीसरे गमक में-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बारह अहोरात्र अधिक अट्ठयासी हजार वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार नौ ही गम्मों में संवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिए। (१-९) २७. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले वायुकायिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणवायुकायिकों के विषय में तेजस्कायिकों की तरह नौ ही गमक कहने चाहिए। विशेष-वायुकाय का संस्थान पताका के आकार का कहा गया है। स्थिति उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की होती है। तीसरे गमक में-काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार नौ गम्मों में काय संवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिए। (१-९) २८. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले वनस्पतिकायिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणअप्कायिकों के गमकों के समान वनस्पतिकायिकों के भी नौ गमक कहने चाहिए। विशेष-संस्थान अनेक प्रकार का होता है। शरीर की अवगाहना प्रथम तीन और अन्तिम तीन गमकों में जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन की होती है। मध्य के तीन गमकों में उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है। स्थिति-उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की होती है। तृतीय गमक में-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख अट्ठाईस हजार वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार काय संवेध भी उपयोगपूर्वक कहना चाहिए। (१-९)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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