SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२४ द्रव्यानुयोग-(३) सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं साइरेगपुव्वकोडी आउएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! सेसं तं चेव पढम गमग वत्तव्यया। णवर-ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगंधणुसहस्स। ठिई-जहण्णेणं साइरेगा पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि साइरेगा पुचकोडी। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं साइरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(४ चउत्थो गमओ) सो चेव जहण्णकालटिईएस उववण्णो, एसा चेव वत्तव्वया चउत्य गमग सरिसा कायव्या। णवर-असुरकुमारजहण्णट्टिइं संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा।(५पंचमो गमओ) वही (असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट कुछ अधिक पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! शेष सब कथन प्रथम गमक के समान है। विशेष-अवगाहना-जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार धनुष की है। स्थिति-जघन्य साधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट भी साधिक पूर्वकोटि की है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार स्थिति के समान है। कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट सातिरेक दो पूर्वकोटि जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह चतुर्थ गमक है।) वही जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो उसका कथन चतुर्थ गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-यहाँ असुरकुमारों की जघन्य स्थिति और संवेध के विषय में उपयोगपूर्वक जान लेना चाहिए। (यह पाँचवा गमक है) वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो जघन्य कुछ अधिक पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले और उत्कृष्ट भी कुछ अधिक पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। शेष सब कथन चतुर्थ गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य कुछ अधिक दो पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट भी सातिरेक (कुछ अधिक) दो पूर्वकोटि वर्ष जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह छट्ठा गमक है।) वही जीव स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो तो वही प्रथम गमक के समान कथन (लब्धि) करना चाहिए। विशेष-उसकी स्थिति जघन्य तीन पल्योपम है और उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार स्थिति के समान है। कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट छह पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह सातवाँ गमक है) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएस उववण्णो, जहण्णेणं साइरेगपुव्वकोडिआउएसु, उक्कोसेण वि साइरेगपुव्वकोडी आउएसु उववज्जेज्जा, सेसं तं चेव चउत्थ गमग वत्तव्वया। णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, उक्कोसेण वि साइरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (६छट्ठो गमओ) सो चेव अप्पणा उक्कोसकालटिईओ जाओ, सो चेव पढमगमग सरिसा लद्धी भाणियव्वा, णवर-ठिई जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाई। एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छ पलिओवमाई एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(७ सत्तमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो, एसा चेव सत्तम गमग वत्तव्वया, वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो उसके लिए भी सातवें गमक के समान कथन करना चाहिए। विशेष-असुरकुमारों की जघन्य स्थिति और संवेध का कथन उपयोगपूर्वक यहाँ जान लेना चाहिए। (यह आठवां गमक है) णवर-असुरकुमारजहण्णट्टिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा (८ अट्ठमो गमओ)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy