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________________ १६१२ १. सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। २.लेस्साओ तिण्णि आदिल्लाओ, ३.नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, ४.नो नाणी, दो अण्णाणा नियम, ५. समुग्घाया आदिल्ला तिण्णि, ६-८.आउं,अज्झवसाणा,अणुबंधो य जहेव असण्णीणं। कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तममहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(४ चउत्थो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! सो चेव चउत्थो गमओ भवादेसपज्जवसाणो भाणियव्यो। कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा (५ पंचमो गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं सागरोवमट्ठिईसु उववज्जेज्जा, उक्कोसेण वि सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। द्रव्यानुयोग-(३) १. इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व (अनेक धनुष) की होती है। २. इनमें प्रथम तीन लेश्याएं होती हैं। ३. वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी नहीं होते, किन्तु मिथ्यादृष्टि होते हैं। ४. इनमें ज्ञान नहीं होते हैं किन्तु नियम से दो अज्ञान होते हैं। ५. इनमें आदि के तीन समुद्घात होते हैं। ६.७.८. इनके आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबन्ध का कथन असंज्ञी के नरक में उत्पन्न होने के समान समझना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार सागरोपम काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह चौथा गमक है) वही जघन्य काल की स्थिति वाला, पूर्वोक्त (पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी में) जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले तथा उत्कृष्ट भी दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! सम्पूर्ण कथन पूर्वोक्त चतुर्थ गमक के समान भवादेश पर्यन्त कहना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चालीस हजार वर्ष काल व्यतीत करता है तथा इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह पांचवा गमक है) वही जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट भी सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! सम्पूर्ण कथन भवादेश पर्यंत चतुर्थ गमक के समान है। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार सागरोपम काल व्यतीत करता है तथा इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह छट्ठा गमक है।) प्र. भंते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! शेष परिमाण आदि से भवादेश पर्यन्त का कथन उक्त प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-इन दो स्थानों में विशेषता है प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! सोचेव चउत्थो गमओभवादेसपज्जवसाणो। कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा।(६छट्ठो गमओ) प. उक्कोसकालट्ठिईयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति? उ. गोयमा ! अवसेसा परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सोचेव पढमगमओ नेयव्यो, णवर-इमाई दोणाणत्ताई
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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