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________________ गम्मा अध्ययन प. से णं भंते ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदिय तिरिक्खजोणिए रयणप्पभापुढवि नेरइए पुणरवि पज्जत्ता संखेज्जवासाउय सण्णि पंचेंदिय तिरिक्खजोणिए केवइयं कालं सेवेज्जा, केवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा? । १६११ ) प्र. भंते ! वह पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव रलप्रभापृथ्वी में नैरयिक होकर पुनः पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के रूप में उत्पन्न हो तो कितना काल व्यतीत करता है और कितने काल तक गमनागमन करता है? उ. गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है, कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) प्र. भंते ! जो पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट भी दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वही प्रथम गमक का सम्पूर्ण वर्णन यहां कहना चाहिए, उ. गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं । कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (पढमो गमओ।) प. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहण्णकालट्ठिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवइय कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेण वि ___दसवाससहस्सट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्यो, णवरं-कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा,एवइयं कालंगतिरागतिं करेज्जा। (२ बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं सागरोवमट्ठिईएसु उक्कोसेण वि सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमो नेयव्वो। कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा (३ तइओ गमओ) प. जहण्णकालट्ठिईयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए,से णं भंते! केवइ कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। विशेष-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह दूसरा गमक है) वही उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो तो जघन्य एक सागरोपम की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। शेष परिमाण आदि भवादेश पर्यन्त का कथन पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्व कोटि अधिक चार सागरोपम पर्यन्त काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है।) प्र. भंते ! जसम्यकाल की स्थिति वाला पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने वाला हो तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! शेष भवादेश पर्यत सब कथन प्रथम गमक के समान जानना चाहिए। विशेष-निम्नोक्त आठ विषयों में अन्तर है, यथा प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! अवसेसो भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढम गमओ, णवरं-इमाइं अट्ठनाणत्ताई,तं जहा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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