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________________ गम्मा अध्ययन उ. गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिईएसु उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टिईसु उववज्जेज्जा । प. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति ? उ. गोयमा ! जहणणेणं एको वा दो वा तिष्णि वा उक्कोसेण संखेज्जा था, असंखेज्जा वा उपयज्जति । सेसं जहा सत्तमगमए जाव अणुबंधो त्ति । प से णं भंते! उक्कोसकालट्ठिईयपज्जत्ता असण्णिपंचिंदिय तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालट्ठिईयरयणप्पभापुढविनेरइए पुणरवि पज्जत्ता असण्णिपर्थिदिय तिरिक्खजोणिय उक्कोसकालटिईए केवइयं काल सेवेज्जा, केवइयं कालं गतिरागति करेज्जा ? उ. गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडीएअब्भहियं, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्यकोडिए अमहिय एवइयं काल सेवेज्जा एवइयं काल गतिरागति करेजा (९ नवमो गमओ) एवं एए ओहिया तिष्णि गमगा, जहण्णकालडिईएस तिष्णि गमगा, उक्कोसकालनिईएस तिष्णि गमगा सच्चे नव गमगा भवंति । - विया. स. २४, उ. १, सु. ४-५० " ४. रयणप्पभानरयउववज्जंतेसु पज्जत्त सन्नि संखेज्जवासाउयपंचिंदियतिरिक्खजोगिएसु उववायाइ वीसं दारं परूवणं प. भंते! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? असंखेज्जवासाउयसष्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उपवति ? उ. गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति । प. भंते! जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उव॒यज्ज॑ति किं जलचरेहितो उववज्जति थलचरेहिंतो उववज्जति, खहचरेहिंतो उववज्र्ज्जति ? " उ. गोयमा ! जलचरेहिंतो वि उववज्जंति, थलचरेहिंतो वि उववज्जति खहचरेहिंतो वि उववज्जति । " प. भंते! जइ जलचर थलचर- खहचरेहितो उववज्जति किंपज्जत्तएहिंतो उवयज्जति, अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? " १६०९ उ. गौतम! वह जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. उ. भंते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। अनुबन्ध पर्यन्त सभी आलापक सप्तम गमक के अनुसार जानना चाहिए। प्र. भंते! वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप में उत्पन्न होकर पुनः उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पर्याप्त असंक्षीपचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक रूप में उत्पन्न हो तो कितना काल व्यतीत करता है और कितने काल तक गमनागमन करता है ? उ. गौतम ! भवादेश से वह दो भव ग्रहण करता है और कालादेश से जघन्य पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्य भाग काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह नौवां गमक है) इस प्रकार ये तीन औधिक (सामान्य) गमक हैं, जघन्य काल की स्थिति की अपेक्षा तीन गमक हैं और उत्कृष्ट काल की स्थिति की अपेक्षा भी तीन गमक हैं। ये सब मिलाकर नौ गमक होते हैं। ४. रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संज्ञी संख्यात वर्षायुष्क पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक में उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण प्र. भंते! यदि नैरयिक संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! ये संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भंते! यदि नैरधिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, स्थलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं या खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! वे जलचरों में से भी आकर उत्पन्न होते हैं, स्थलचरों में से भी आकर उत्पन्न होते हैं और खेचरों में से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते! यदि वे जलचर - स्थलचर और खेचर जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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