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________________ १५१८ २-४. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा।(४) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। २-४. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा (८) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। २-४. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए,एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१२) १. अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। २-४. एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१६) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, दो धूमप्पभाए होज्जा।(१७) एवं जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो भणिओ तहा पंचण्ह वि चउक्कसंजोगो भाणियव्यो। [ द्रव्यानुयोग-(२)] २-४. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (४) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। २-४. इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।२ (८) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। २-४. इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।३ (१२) १. अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। २-४. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (१६) १. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और दो धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं। (१७) जिस प्रकार चार नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार पाँच नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहने चाहिए। विशेष-यहाँ एक अधिक का संचार (संयोग) करना चाहिए। इसी प्रकार यावत् अथवा दो पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है।५ (१४०) (पंचसंयोगी के २१ भंग-) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। २. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ३. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ४. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। णवरं-अब्भहियं एगो संचारेयव्वो, एवं जाव अहवा दो पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए,एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१४०) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए,एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा, ३. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ४. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। १. इस प्रकार १-१-१-२ के संयोग से चार भंग होते हैं। (४) २. इस प्रकार १-१-२-१ के संयोग से चार भंग होते हैं (८) ३. इस प्रकार १-२-१-१ के संयोग से चार भंग होते हैं (१२) ४. इस प्रकार २-१-१-१के संयोग से चार भंग होते हैं (१६) ५. चतुःसंयोगी भंग-इनमें से रत्नप्रभा के संयोग वाले ८०, शर्कराप्रभा के संयोग वाले ४०, वालुकाप्रभा के संयोग वाले १६ और पंकप्रभा के संयोग वाले ४, ये सभी मिलाकर पाँच नैरयिकों के चतुःसंयोगी १४० भंग होते
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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