SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 778
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुक्कंति अध्ययन १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, तिण्णि वालुयप्यभाए होज्जा। २५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए, तिणि अहेसत्तमाए होज्जा (५) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, दो वालुयष्पभाए होज्जा। २५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करयभाए दो आहेसत्तमाए होज्जा । (१०) १. अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयपभाए होना। एगे २-५. एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, सक्करण्यभाए दो आहेसत्तमाए होज्जा । (१५) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि सक्करप्पभाए, एगे वालुयष्पभाए होज्जा। २-५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि सक्करयभाए, एगे अहेसासमाए होज्जा । (२०) १. अहवा दो रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए होज्जा । २-५. एवं जाव दो रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा । (२५) १. अहवा तिणि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयचभाए होजा २५. एवं जाव अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे असत्तमाए होज्जा । (३०) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे चालुक्यभाए, तिष्णि पंकप्पभाए होज्जा । एवं एएण कमेणं जहा उन्हं तियसंजोगो भणिओ तहा पंच वितियसंजोगो भाणिपब्यो, नवरं तत्थ एगो संचारिज्जइ, इह दोण्णि, सेस तं चैव जाय अहवा तिणि धूमप्यभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा (२१०) 9. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुभाए दो पंकष्पभाए होज्जा । १५१७ (त्रिक संयोगी २१० भंग) 7 १. अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । १ (५) १. अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २- ५. इसी प्रकार यावत्-अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और दो अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (90) १. अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं । २ २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । ३ (१५) १. अथवा एक रत्नप्रभा में तीन शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। " २-५ . इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में तीन शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है । ४ (२०) १. अथवा दो रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अथ सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है^ (२५) , १. अथवा तीन रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है । ६ (३०) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और तीन पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं उसी प्रकार पांच नैरयिकों के भी त्रिकसंयोगी भंग जानना चाहिए। विशेष - वहाँ एक का संचार था, ( उसके स्थान पर) यहाँ दो का संचार करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जान लेना चाहिए. यावत् अथवा तीन धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अघ सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (२१०) ( चतु:संयोगी के १४० भंग - ) " 9. अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं। 9. इस प्रकार एक-एक और तीन के रत्नप्रभा शर्कराप्रभा के साथ संयोग से पाँच भंग होते हैं। (५) २. इस प्रकार एक, दो के संयोग से पाँच भंग होते हैं। (१०) ३. इस प्रकार दो, एक, दो के संयोग से ५ भंग होते हैं। (१५) ४. इस प्रकार एक, तीन, एक के संयोग से ५ भंग होते हैं। (२०) ५. इस प्रकार दो, दो, एक के संयोग से पाँच भंग होते हैं। (२५) ६. इस प्रकार तीन एक-एक के संयोग से ५ भंग होते हैं। (३०) 7 ७. त्रिकसंयोगी भंग-इनमें से रत्नप्रभा के संयोग वाले ९०, शर्कराप्रभा के संयोग वाले ६०, वालुकाप्रभा के संयोग वाले ३६, पंकप्रभा के संयोग वाले १८ और धूमप्रभा के संयोग वाले ६ भंग होते हैं। (ये सभी ९०-६०-३६-१८-६ = २१० भंग त्रिकसंयोगी होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy