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________________ १५०३ वुक्कंति अध्ययन एवं सोहम्मपुढविकाइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववाएयव्यो जाव अहेसत्तमो। एवं जहा सोहम्मपुढविकाइओसव्वपुढवीसु उववाईओ। एवं जाव ईसिपब्भारापुढविकाइओ सव्वपुढवीसु जाव अहे सत्तमाए। -विया. स. १७, उ.७, सु.१ प. आउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहा पुढविकाइयाओ तहा आउकाइयाओ वि सव्वकप्पेसुजाव ईसिपब्भाराए तहेव उववाएयव्यो। एवं जहा रयणप्पभा आउकाइओ उववाईओ तहा जाव अहेसत्तम आउकाइओ उववाएयव्यो जाव ईसिपब्भाराए। -विया. स.१७, उ.८, सु. १-२ प. आउकाइएणं भंतें ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलयेसु आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, उसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों का सातों नरक-पृथ्वियों में अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त उत्पाद आदि जानना चाहिए। इसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों के समान सभी कल्पों से ईषयाग्भारा पृथ्वी पर्यन्त के पृथ्वीकायिक जीवों का अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त सात नरक पृथ्वियों में उत्पाद आदि जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! जो अकायिक जीव, इस रलप्रभा पृथ्वी में मरण समुद्घात से समवहत होकर सौधर्मकल्प में अप्कायिक-रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या पहले पुद्गल ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार अप्कायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में ईषत्याग्भारा पृथ्वी पर्यन्त (पूर्ववत्) उत्पाद आदि कहना चाहिए। जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी के अकायिक जीवों के उत्पाद का कथन किया वैसे ही अधःसप्तम-पृथ्वी के अप्कायिक जीवों पर्यन्त का ईषत्याग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! जो अप्कायिक जीव सौधर्म कल्प में मरण समुद्घात से समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के धनोदधिवलयों में अकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या पहले पुद्गल ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! शेष सभी पूर्ववत् अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरकपृथ्वियों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषयाग्भारा पृथ्वी पर्यन्त के अकायिक जीवों का उत्पाद अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। भन्ते ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरणसमुद्घात से समवहत होकर सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या पहले पुद्गल ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए। विशेष-वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा१. वेदनासमुद्घात, २. कषाय समुद्घात, ३. मारणान्तिक समुद्घात, ४. वैक्रिय समुद्घात। वह मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर देश से भी समुद्घात करता है और सर्व से भी समुद्घात करता है। पुब्बिं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सेसं तं चेव, एवं जाव अहेसत्तमाए। जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिपब्भाराए आउकाइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्यो। -विया. स. १७, उ.९, सु.१-३ प. वाउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए समोहणित्ता, जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा !जहा पुढविकाइयाओ तहा वाउकाइओ वि। णवरं-वाउकाइयाणं चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा१. वेयणासमुग्घाए, २. कसाय समुग्घाए, ३. मारणंतिय समुग्घाए, ४. वेउव्वियसमुग्घाए। मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ,सव्वेण वा समोहण्णइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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