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________________ १५०२ उ. गोयमा ! पुढविकाइयाणं तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा१. वेयणासमुग्घाए, २. कसायसमुग्घाए, ३. मारणंतियसमुग्घाए। मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णमाणेदेसेण वा समोहण्णइ सव्वेण वा समोहण्णइ, देसेणं समोहण्णमाणे पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जिज्जा, सव्वेणं समोहण्णमाणे पुव्विं उववज्जेत्ता पच्छा संपाउणेज्जा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जिज्जा, पुव्विं उववज्जेत्ता पच्छा संपाउणेज्जा।" एवं चेव ईसाणे वि। एवं जाव अच्चुए। गेविज्जविमाणे अणुत्तरविमाणे ईसिपब्भाराए य एवं चेव। प. पुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ उववाइओ तहा सक्करप्पभाए, पुढविकाइओ वि उववाएयव्यो जाव ईसिपब्भाराए। एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया भणिया। एवं जाव अहेसत्तमाए. समोहओ ईसिपब्भाराए उववाएयव्यो। द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के तीन समुद्घात कहे गए हैं, यथा१. वेदना समुद्घात , २. कषाय समुद्घात ३. मारणान्तिक समुद्घात जब पृथ्वीकायिक जीव मारणान्तिक समुद्घात करता है, तब वह देश से समुद्घात करता है और सर्व से भी समुद्घात करता है। जब देश से समुद्घात करता है तब पहले पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है। जब सर्व से समुद्घात करता है तब पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है पहले वह पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है।" इसी प्रकार ईशानकल्प में (पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य जीवों के लिए भी) जानना चाहिए। इसी प्रकार अच्युतकल्प के सम्बन्ध में समझना चाहिए। ग्रैवेयक विमान, अनुत्तर विमान और ईषत्याग्भारा पृथ्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! जो पृथ्वीकायिक जीव इस शर्कराप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात से समवहत होकर सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या पहले पुद्गल ग्रहण करके पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों के उत्पाद आदि कहे, उसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद आदि ईषत्याग्भारा पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। जिस प्रकार रत्नप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों के लिए कहा, उसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी में मरण-समुद्घात से समवहत जीव का ईषयाग्भारा पृथ्वी पर्यन्त उत्पाद आदि जानना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! जो पृथ्वीकायिक जीव सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात से समवहत होकर इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में पृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या, पहले पुद्गल -ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है, पहले वह पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है। शेष कथन पूर्ववत् है। जिस प्रकार रत्नप्रभा-पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का सभी कल्पों में ईषत्याग्भारा पृथ्वी पर्यन्त जो उत्पाद आदि कहा गया सेसंतं चेव। -विया. स.१७, उ.६, सु.१-६ प. पुढविकाइएणं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवी पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? . उ. गोयमा ! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा। सेसं तं चेव। जहा रयणप्पभापुढविकाइओ सव्वकप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए ताव उववाइओ।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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