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________________ वुक्कति अध्ययन प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “नेरइया छक्कसमज्जिया विजाव छक्केहि य नो छक्केण य समज्जिया वि?" उ. गोयमा !१.जेणं नेरइया छक्कएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं नेरइया छक्कसमज्जिया। २.जेणं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति, ते णं नेरइया नो छक्कसमज्जिया। ३. जेणं नेरइया एगेणं छक्कएणं,अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया। ४. जे णं नेरइयाऽणेगेहिं छक्कएहिं पवेसणगं पविसंति तेणं नेरइया छक्केहिं समज्जिया। ५. जेणं नेरइयाउणेगेहिं छक्कएहिं, अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइया छक्कसमज्जिया जाव छक्केहिं य, नो छक्केण य समज्जिया वि।" दं.२-११. एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। १४८९ ) प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक षट्क-समर्जित भी है यावत् अनेक षट्क-समर्जित तथा एक नो षट्क-समर्जित भी है?" उ. गौतम ! १. जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) छह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक “षट्क-समर्जित" (कहलाते) हैं। २.जो नैरयिक (एक साथ) जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट पाँच की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नो षटक-समर्जित कहलाते हैं। ३. जो नैरयिक एक षट्क संख्या से और अन्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पांच की संख्या में प्रवेश करते हैं, "वे षट्क और नो षट्क-समर्जित" (कहलाते) हैं। ४. जो नैरयिक अनेक षट्क संख्या में प्रवेश करते हैं वे नैरयिक अनेक षट्क समर्जित (कहलाते) हैं, ५. जो नैरयिक अनेक षट्क संख्या से और जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पांच की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक “अनेक षट्क और एक नो षट्क समर्जित" (कहलाते) हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक षट्क समर्जित भी हैं यावत् अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित भी हैं। दं.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! क्या पृथ्वीकायिक जीव षट्क-समर्जित है यावत् अनेक षट्क समर्जित और एक नो षट्क समर्जित है? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव षट्क-समर्जित नहीं है, नो षट्क-समर्जित नहीं हैं और एक षट्क और एक नो षट्कसमर्जित भी नहीं हैं, किन्तु अनेक षट्क-समर्जित हैं तथा अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "पृथ्वीकायिक जीव षट्क समर्जित नहीं है यावत् अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित भी है?" उ. गौतम !१.जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक षट्क से प्रवेश करते हैं वे अनेक षट्क-समर्जित हैं। प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते ! छक्कसमज्जिया जाव छक्केहि य, नो छक्केण य समज्जिया ? उ. गोयमा ! पुढविकाइया नो छक्कसमज्जिया, नो छक्कसमज्जिया, नो छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया, छक्केहिं समज्जिया वि छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया वि। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पुढविकाइया नो छक्क समज्जिया जाव छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया?" उ. गोयमा ! १. जे णं पुढविकाइयाऽणेगेहिं छक्कएहिं पवेसणगं पविसंति, ते णं पुढविकाइया छक्केहि समज्जिया। २. जे णं पुढविकाइयाऽणेगेहिं छक्कएहिं य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तिहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुढविकाइया, नो छक्कसमज्जिया जाव छक्केहि य नो छक्केण य समज्जिया वि।" २. जो पृथ्वीकायिक अनेक षट्क से तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पाँच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे पृथ्वीकायिक अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित कहलाते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पृथ्वीकायिक जीव षट्क समर्जित नहीं हैं यावत् अनेक षट्क समर्जित तथा अनेक षट्क और एक नो षट्क समर्जित है।"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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