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________________ ( १४८८ - दं.१७-२४. बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया। प. सिद्धा णं भंते ! किं कइसंचिया, अकइसंचिया, अवत्तव्वगसंचिया? उ. गोयमा ! सिद्धा कइसंचिया, नो अकइसंचिया, अवत्तव्वगसंचिया। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "सिद्धा कइ संचिया, नो अकइसंचिया, अवत्तव्वगसंचिया।" उ. गोयमा !जेणं सिद्धा संखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा कइसंचिया, जे णं सिद्धा एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा अवत्तव्वगसंचिया। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिद्धा कइ संचिया, नो अकइसंचिया, अवत्तव्वगसंचिया वि।"-विया.स.२०, उ.१०, सु.२३-२८ ४७. चउवीसदंडगाणं सिद्धाण य कइ संचियाइ विसिट्ठ अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं कइसंचियाणं अकइसंचियाणं अवत्तव्वगसंचियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा नेरइया अवत्तव्वगसंचिया, २. कइसंचिया संखेज्जगुणा, ३. अकइसचिया असंखेज्जगुणा। एवं एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं अप्पाबहुगं एगिंदियाणं नत्थि अप्पाबहुगं। प. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं कइसंचियाणं अवत्तव्वगसंचियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा सिद्धा कइसंचिया। २.अवत्तव्वगसंचिया संखेज्जगुणा। -विया.स.२०,उ.१०,सु.२९-३१ ४८. चउवीसदंडएसु सिद्धेसुय छक्क समज्जियाइ परूवणं द्रव्यानुयोग-(२)) दं. १७-२४. द्वीन्द्रियों से वैमानिकों पर्यन्त नैरयिकों के समान कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या सिद्ध कतिसंचित है, अकतिसंचित है या अवक्तव्य संचित है? उ. गौतम ! सिद्ध कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित है, किन्तु __ अकतिसंचित नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सिद्ध कतिसंचित है और अवक्तव्यसंचित है, किन्तु अकतिसंचित नहीं है।" उ. गौतम ! जो सिद्ध संख्यातप्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे सिद्ध कतिसंचित हैं। जो सिद्ध एक-एक करके प्रवेश करते हैं वे सिद्ध अवक्तव्यसंचित हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सिद्ध कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित हैं किन्तु अकतिसंचित नहीं हैं।" ४७. कतिसंचितादि विशिष्ट चौबीस दण्डक और सिद्धों का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! इन १. कतिसंचित, २. अकतिसंचित और ३.अवक्तव्यसंचित नैरयिकों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प अवक्तव्यसंचित नैरयिक हैं, २. (उनसे) कतिसंचित नैरयिक संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) अकतिसंचित नैरयिक असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त अल्पबहुत्व कहना चाहिए, एकेन्द्रियों का अल्पबहुत्व नहीं है। प्र. भन्ते ! कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित सिद्धों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प कतिसंचित सिद्ध हैं, २. (उनसे) अवक्तव्यसंचित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। प. दं. १. नेरइया णं भंते ! किं छक्कसमज्जिया, नो छक्कसमज्जिया, छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया, छक्केहिं समज्जिया,छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया? ४८. चौबीस दण्डकों और सिद्धों में षट्क समर्जितादि का प्ररूपणप्र. दं.१.भन्ते ! क्या नैरयिक षट्क-समर्जित है, २.नो षट्क समर्जित है, ३. (एक) षटक् और नो षटक्-समर्जित हैं, ४.(अनेक) षट्क-समर्जित है या, ५. अनेक षट्क-समर्जित और एक नो षट्क-समर्जित है? उ. गौतम ! नैरयिक १. षट्क-समर्जित भी है, २. नो षट्क समर्जित भी है,३. एक षट्क और एक नो षटूक-समर्जित भी है, ४. तथा अनेक षट्क-समर्जित है और ५. अनेक षट्क समर्जित और एक नो षट्क-समर्जित भी है। उ. गोयमा ! नेरइया छक्कसमज्जिया वि, नो छक्कसमज्जिया वि, छक्केण य, नो छक्केण य समज्जिया वि, छक्केहिं सम्मज्जिया वि, छक्केहि य,नो छक्केण य समज्जिया वि। १. ठाणं अ.३, उ.१,सु. १२९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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