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________________ १४६८ उ. गोयमा ! नो एगिदिएसुजाव नो चउरिदिएसु उववज्जति, पंचेंदिएसु उववज्जति। एवं जेहिंतो उववाओ भणियो तेसु उब्वट्टणा वि भाणियव्या। णवरं-सम्मुच्छिमेसु न उववज्जंति। एवं सव्वपुढविसु भाणियव्वं। द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! (वे) एकेन्द्रियों से चतुरिन्द्रियों पर्यन्त उत्पन्न नहीं होते हैं, (किन्तु) पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार जिन-जिन से उपपात कहा गया है, उन-उन में ही उद्वर्तना कहनी चाहिए। विशेष-वे सम्मूर्छिमों में उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार समस्त (नरक) पृथ्वियों में उद्वर्तना का कथन करना चाहिए। विशेष-अधःसप्तम पृथ्वी से मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं। णवरं-अहेसत्तमाओ मणुस्सेसु न उववज्जंति। -पण्ण.प.६.सु.६६६-६६७ प. (देवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति?) उ. (गोयमा !) उव्वट्टित्ता नो नेरइएसु गच्छंति, तिरियमणुस्सेसु जहासंभवं, नो देवेसु गच्छंति, -जीवा. पडि.१, सु. ४२ प. दं. २. असुरकुमारा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववज्जति, नो देवेसु उववज्जति। प. जइ तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, किं एगिदिएसु जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! एगिंदिय-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, नो बेइंदिएसु जाव नो चउरिदिएसु उववजंति, पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति। प. जइ एगिदिएसु उववज्जंति, किं पुढविकाइयएगिदिएसु जाव वणस्सइयएगिदिएसु उववज्जंति? उ. गोयमा ! पुढविकाइयएगिदिएसु वि उववज्जंति, आउकाइयएगिदिएसु वि उववज्जति, नो तेउकाइएसु उववज्जति, नो वाउकाइएसु उववज्जंति, वणस्सइकाइएसु उववज्जंति। प. जइ पुढविकाइएसु उववज्जति, किं सुहुमपुढविकाइएसु उववज्जति? बादरपुढविकाइएसु उववज्जंति? । उ. गोयमा ! बादरपुढविकाइएसु उववज्जति, नो सुहुमपुढविकाइएसु उववज्जति। प. जइ बादरपुढविकाइएसु उववज्जति, प्र. (भंते ! देव अनन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ?) उ. (गौतम) ! वे उद्वर्तन करके नैरयिकों में नहीं जाते हैं। यथासंभव तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। देवों में भी नहीं जाते हैं। प्र. दं.२. भंते ! असुरकुमार अनन्तर उद्वर्तना करके कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं? क्या (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु द्वीन्द्रियों से चतुरिन्द्रियों पर्यन्त उत्पन्न नहीं होते हैं, वे पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो, क्या पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, अप्कायिक एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं, तेजस्कायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते हैं, वायुकायिक एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न नहीं होते हैं, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या, सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, १. जीवा. पडि.३,सु.९१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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