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________________ १४६१ वुक्कंति अध्ययन उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। प. दं. २. असुरकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। दं.३-११.एवं २. णागकुमाराणं, ३. सुवण्णकुमाराणं, ४. विज्जुकुमाराणं, ५. अग्गिकुमाराणं, ६. दीवकुमाराणं, ७. उदहिकुमाराणं, ८. दिसाकुमाराणं, ९. वाउकुमाराणं, १०. थणियकुमाराणय। पत्तेयं पत्तेयं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउवीसं मुहुत्ता। प. दं. १२. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणुसमयंविरहयं उववाएणं पण्णत्ता। दं. १३-१६.२. आउकाइयाण वि, ३. तेउकाइयाण वि, ४. वाउकाइयाण वि, ५. वणस्सइकाइयाण वि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पण्णत्ता। प. दं. १७. ६. बेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। दं.१८-१९.एवं ७.तेइंदिय,८.चउरिंदिया। उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छह मास तक। प्र. दं. २. भंते ! १. असुरकुमार कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त तक। दं. ३-११. इसी प्रकार प्रत्येक२. नागकुमार, ३. सुवर्णकुमार, ४. विद्युत्कुमार, ५. अग्निकुमार, ६. द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. दिशाकुमार, ९. वायुकुमार और १०. स्तनितकुमार देवों का। प्रत्येक का उपपात विरहकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त का कहा गया है। प्र. द.१२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! प्रतिसमय उपपात से अविरहित कहे गए हैं। दं. १३-१६ इसी प्रकार २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक एवं ५. वनस्पतिकायिक जीव भी प्रतिसमय उपपात से अविरहित कहे गए हैं। प्र. दं.१७. भंते ! ६. द्वीन्द्रिय जीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक। दं. १८-१९ इसी प्रकार ७ त्रीन्द्रिय एवं ८. चतुरिन्द्रिय के उपपात विरहकाल के लिए जानना चाहिए। प्र. दं. २०. भंते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त। प्र. २. भंते ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। प्र. १.दं.२१. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्य कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त तक। प्र. २. भंते ! गर्भज मनुष्य कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उपपात से विरहित कहे गए हैं। प्र. दं. २२. भंते ! वाणव्यन्तर देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? प. दं.२०.१.सम्मुच्छिम-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। प. २. गब्भवक्कंतिय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। प. १. दं. २१. सम्मुच्छिम-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। प. २. गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस महुत्ता। प. दं. २२. वाणमंतराणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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