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________________ १४५४ प. गब्भवक्कंतियमणुस्सा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ नेरइएहिं अहेसत्तमवज्जेहिं उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववाओ असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं उववज्जति, मणुएहिं अकम्मभूमग-अंतरदीवग-अंसखेज्जवासाउयवज्जेहिं उववज्जति, देवेहिं सव्वेहि उववज्जति। -जीवा. पडि. १, सु.४१ प. द.२२.वाणमंतरदेवा णं भंते !कओहिंतो उववज्जति? किनेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववति? उ. गोयमा ! जेहिंतो असुरकुमाराणं।' उववाओ भणियो तेहिंतो वाणमंतराण विभाणियव्यो। प. दं.२३.जोइसियदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? उ. गोयमा ! एवं चेव, णवरं-सम्मुच्छिम-असंखेज्जवासाउय-खहयर-अंतरदीवगमणुस्सवज्जेहिंतो उववज्जावेयव्वा।२ प. वेमाणियाणं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? किंणेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहितो उववज्जति? द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भंते ! गर्भज मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! अधःसप्तम पृथ्वी को छोड़कर शेष सब पृथ्वियों में से आकर उत्पन्न होते हैं। असंख्यात वर्षायुष्कों को छोड़कर शेष सब तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमिज, अन्तरर्दीपज और असंख्यात वर्षायुष्कों को छोड़कर शेष मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। सभी देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. दं.२२ भंते ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जिन-जिन से असुरकुमारों की उत्पत्ति कही है, उन-उन से वाणव्यन्तर देवों की भी उत्पत्ति कहनी चाहिए। प्र. दं. २३ भंते ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् उपपात समझना चाहिए। विशेष-ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्मूर्छिम असंख्यातवर्षायुष्कखेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों को तथा अन्तर्वीपज मनुष्यों को छोड़कर कहनी चाहिए। प्र. भंते ! वैमानिक देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या (वे) नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम !(वे) नैरयिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। देवों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के वैमानिक देवों (की) उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए। सनत्कुमार देवों के उपपात के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सहनारकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों का उपपात भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! आनत देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) नैरयिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, प्र. यदि (वे) मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? या गर्भज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! णो णेरइएहिंतो उववजंति, पचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जति, णो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं चेव सोहम्मीसाणगा भाणियव्वा।३ एवं सणंकुमारगा वि। णवरं-असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमगवज्जे हितो उववज्जति। एवं जाव सहस्सारकप्पोवग-वेमाणियदेवा भाणियव्या। प. आणयदेवा णं भंते !कओहिंतो उववति ? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जति, नो देवेहिंतो उववज्जति। प. जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, किं सम्मुच्छिम-मणुस्सेहिंतो उववति? गब्भवक्कंतिय-मणुस्सेहिंतो उववति? १. विया. स. २४, उ. २२, सु.१ २. विया. स. २४, उ.२३, सु.१ ३. (क) विया.स.२४, उ.२४, सु.१ (ख) जीवा. पडि.३,सु.२०१(ई)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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