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________________ वुक्कंति अध्ययन प. जइ कप्पोवग-वेमाणियदेवेहितो उववज्जति, किं सोहम्मेहिंतो उववज्जति जाव अच्चुएहितो उववज्जंति? उ. गोयमा ! सोहम्मीसाणेहिंतो उववज्जंति, १४५१ । प्र. यदि कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे सौधर्म कल्प के देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् अच्युत कल्प के देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) सौधर्म और ईशान कल्प के देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार से अच्युत कल्प पर्यन्त के देवों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भंते ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? नो सणंकुमार जाव अच्चुएहिंतो उववजंति।' -पण्ण.प.६,सु.६५०(१-१८) प. सुहुमपुढविकाइया णं भंते ! जीवा कओहितो उववज्जति? किं नेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहितो उववति ? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, मणुस्सेहिंतो उववज्जति, नो देवेहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणिय-पज्जत्तापज्जत्तेहिंतो, असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववजंति, क्या वे नरक में से, तिर्यञ्च में से, मनुष्य में से या देव में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे नारकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, वे तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो असंख्यातवर्षायु वाले तिर्यञ्चों को छोड़कर शेष पर्याप्त अपर्याप्त तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमिज वाले और असंख्यात वर्षों की आयु वालों को छोड़कर शेष मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार व्युत्क्रान्ति पद के अनुसार उपपात कहना चाहिए। मणुस्सेहिंतो अकम्मभूमग-असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जति, वक्कंति उववाओ भाणियव्यो। -जीवा. पडि. १, सु. १३(१९) प. सण्हबायर-पुढविकाइया णं भंते ! जीवा कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेहितो देवेहिं जाव सोहम्मिसाणेहिंतो। -जीवा. पडि. १, सु. १४, दं.१३. एवं आउक्काइया विार रत दं.१४-१५ एवं तेउ३ वाऊ वि। प्र. भंते ! श्लक्ष्ण बादरपृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इनका उपपात तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देवों में से सौधर्म ईशान कल्प के देवों पर्यन्त से होता है। दं. १३ इसी प्रकार अप्कायिकों की उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए। दं. १४-१५ इसी प्रकार तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए। विशेष-ये देवों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं। वनस्पतिकायिकों की उत्पत्ति के विषय में कथन पृथ्वीकायिकों के समान समझना चाहिए। दं. १७-१९ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति का कथन तेजस्कायिकों और वायुकायिकों के समान देवों को छोड़कर समझना चाहिए। प्र. भंते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? णवरं-देववज्जेहिंतो उववति। दं.१६. वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया। दं.१७-१९ बेइंदिय-६ तेइंदिय- चउरिदिया एए जहा तेउ वाऊ देववज्जेहिंतो भाणियव्वा। -पण्ण.प.६.सु.६५१-६५४ प. दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? .. १. विया. स. २४, उ.१२,सु.५२-५३ २. (क) जीवा. पडि. १, सु. १७ (ख) विया. स. २४, उ.१३, सु.२ ३. (क) जीवा. पडि.१,सु.२५ (ख) विया. स. २४,उ.१४, सु.१ ४. विया. स. २४, उ.१५,सु.१ ५. (क) विया. स. २४, उ.१६,सु. १ ७ (ख) विया.स.११,उ.१,सु.५ (ग) विया. स. २१, उ.१,सु.३-४ (घ) विया.स.२१, उ.२-८,सु.१ (ङ) विया.स.२२ (च) विया.स.२३ ६. विया.स.२४, उ. १७,सु.१ . विया.स.२४, उ.१८,सु.१ ८. (क) विया.स.२४,उ.१९,सु.१ (ख) बेईदिय, तेइंदिय चउरिदियाणं उववाओ तिरियमणुस्सेसु णेरइयं देव असंखेज्जवासाउय वज्जेसु। --जीवा. पडि. १, सु. २८-३०
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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