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________________ १४२८ प. महिड्ढिए णं भंते ! देवे अप्पिड्ढियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. हता,गोयमा ! वीईवएज्जा। प. से भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू? उ. गोयमा ! विमोहित्ता वि पभू, अविमोहित्ता विपभू। प. से भंते ! किं पुव्विं विमोहित्ता पच्छा वीईवएज्जा, पुव्विं वीईवइत्ता पच्छा विमोहिज्जा? उ. गोयमा ! पुव्विं वा विमोहित्ता पच्छा वीईवएज्जा, पुव्विं वा वीईवएज्जा पच्छा विमोहिज्जा। प. अप्पिड्ढिए णं भंते ! असुरकुमारे महिड्ढियस्स असुरकुमारस्स मज्झंमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। एवं असुरकुमारेण वि तिन्नि आलावगा भाणियव्या जहा ओहिएणं देवेणं भणिया एवं जाव थणियकुमारेणं, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएणं एवं-चेव। प. अप्पिड्ढिए णं भंते ! देवे महिड्ढियाए देवीए मज्झंमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। प. समिड्ढिए णं भंते ! देवे समिड्ढियाए देवीए मज्झमज्झेणं विईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे, पमत्तं पुण वीईवएज्जा। द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भंते ! क्या महर्द्धिक देव, अल्पऋद्धिक देव के बीचों बीच होकर जा सकता है? उ. हाँ, गौतम ! जा सकता है। प्र. भंते ! वह महर्द्धिक देव उस अल्पऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है या विमोहित किये बिना जाता है? उ. गौतम ! वह विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है। प्र. भंते ! क्या वह महर्द्धिक देव अल्पऋद्धि वाले देव को पहले विमोहित करके बाद में जाता है या पहले जा कर बाद में विमोहित करता है? उ. गौतम ! वह महर्द्धिक देव पहले उसे विमोहित करके बाद में भी जा सकता है और पहले जाकर बाद में भी विमोहित कर सकता है। प्र. भंते !अल्पऋद्धिक असुरकुमार देव महर्द्धिक असुरकुमार देव के बीचों-बीच होकर जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार सामान्य देवों के आलापकों की तरह असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार के भी तीन-तीन आलापक कहने चाहिए। वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के भी इसी प्रकार तीन-तीन आलापक कहने चाहिए। प्र. भंते ! क्या अल्पऋद्धिक देव महर्द्धिक देवी के मध्य में होकर जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् नहीं जा सकता है) प्र. भंते ! क्या समर्द्धिक देव समर्द्धिक देवी के बीचों-बीच हो कर जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, प्रमत्त हो तो निकल सकता है। पूर्वोक्त प्रकार से देव के साथ देवी का भी दण्डक वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! अल्पऋद्धिक देवी, महर्द्धिक देव के मध्य में से होकर जा सकती है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस प्रकार यहां भी यह तीसरा दण्डक कहना चाहिए यावत् प्र. भंते ! महर्द्धिक वैमानिक देवी अल्पऋद्धिक वैमानिक देव के बीचों-बीच में से होकर जा सकती है? उ. हाँ, गौतम ! जा सकती है। प्र. भंते ! अल्पऋद्धिक देवी महर्द्धिक देवी के मध्य में से होकर जा सकती है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार समान ऋद्धिक देवी का समऋद्धिक देवी के बीच में से निकलने का आलापक कहना चाहिए। महर्द्धिक देवी का अल्प ऋद्धिक देवी के बीच में निकलने का आलापक कहना चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक के तीन-तीन आलापक कहने चाहिए। यावत् तहेव देवेण य देवीए य दंडओ भाणियव्यो जाव वेमाणियाए। प. अप्पिड्ढिया णं भंते ! देवी महिड्ढियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। एवं एसो वितइओ दंडओ भाणियव्वो जावप. महिड्ढिया णं भंते ! वेमाणिणी अप्पिड्ढियस्स . वेमाणियस्स मज्झंमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. हंता, गोयमा ! वीईवएज्जा। प. अप्पिड्ढिया णं भंते ! देवी महिड्ढियाए देवीए मज्झंमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे। एवं समिड्ढिया देवी समिड्ढियाए देवीए तहेव। महिड्ढिया देवी अप्पिड्ढियाए देवीए तहेव। एवं एक्केक्के तिन्नि-तिन्नि आलावगा भाणियव्वा जाव
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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