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________________ १४२६ सत्तलवे लुएज्जा, जइ णं गोयमा ! तेसिं देवाणं एवइयं काले आउए पहुप्पए तो णं ते देवा तेणं चेव भवग्गहणेणं सिझंता जाव अंतं करेत्ता, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'लवसत्तमा देवा लवसत्तमा देवा।' -विया.स.१४, उ.७,सु. १२ ५५. सणंकुमारदेविंदस्स भवसिद्धियाइ परूवणंप. सणंकुमारे णं भंते ! देविंदे देवराया किं भवसिद्धिए,अभवसिद्धिए? सम्मद्दिट्टी, मिच्छाद्दिट्टी? परित्तसंसारए, अणंतसंसारए? सुलभ बोहिए, दुल्लभ बोहिए? आराहए, विराहए? चरिमे अचरिमे? उ. गोयमा ! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धीए। एवं सम्मठिी , परित्तसंसारए, सुलभबोहिए, आराहए, चरिमे, पसत्यं नेयव्वं। द्रव्यानुयोग-(२) सात लवों में काटे तो है गौतम ! यदि उन देवों का इतना आयुकाल शेष रहे तो वे देव उसी भव में सिद्ध हो सकते हैं यावत् सर्व दुखों का अन्त कर सकते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि(सात लव का आयुष्य कम होने से) लवसप्तम देव-लवसप्तक देव होते हैं।' ५५. सनत्कुमार देवेन्द्र का भवसिद्धिक आदि का प्ररूपणप्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार क्या भवसिद्धिक है या अभवसिद्धिक है? सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि है? परित्त (परिमित) संसारी है या अनन्त (अपरिमित) संसारी है? सुलभबोधि है या दुर्लभबोधि है ? आराधक है या विराधक है? चरम है या अचरम है? उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं है। इसी प्रकार वह सम्यग्दृष्टि, परित्तसंसारी, सुलभबोधि, आराधक और चरम है (अर्थात्) सभी प्रशस्त पद ग्रहण करने चाहिए। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___ "देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक यावत् चरम है ?" उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहुत से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं का हितैषी, सुखकारी, पथ्याभिलाषी, अनुकम्पिक (दयालु), निःश्रेयसिक (कल्याण या मोक्ष का इच्छुक) है वह उनके हित सुख और निःश्रेयस का कामी है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'सनत्कुमारेन्द्र भवसिद्धिक यावत् चरम है।' प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'सणंकुमारे देविंदे देवराया भवसिद्धिए जाव चरिमे।' उ. गोयमा ! सणंकुमारे देविंदे देवराया बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं, हियकामए, सुहकामए, पत्थकाए आणुकंपिए निस्सेयसिये हिय सुह निस्सेयसकामए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'सणंकुमारे णं भवसिद्धिए जाव चरिमे।' -विया.स.३, उ.१, सु.६२ ५६. हरिणगमेसी देवेण गम संहरण पक्किया परूवणं प. भंते ! हरिणेगमेसी सक्कस्सदूते इत्थी गब्भं साहरमाणे १. किं गब्भाओ गब्भंसाहरइ? २. गब्भाओ जोणिं साहरइ? ५६. हरिणगमेषी देव द्वारा गर्भ संहरण प्रक्रिया का प्ररूपणप्र. भन्ते ! शक्रेन्द्रदूत हरिणैगमेषी देव जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है१. तब क्या एक गर्भाशय से गर्भ को उठाकर दूसरे गर्भाशय ___में रखता है? २. गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी स्त्री के उदर में रखता है? ३. योनि से गर्भ को निकाल कर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखता है? ४. योनि से गर्भ को निकाल कर (वापस उसी तरह) योनि द्वारा दूसरी स्त्री के उदर में रखता है? उ. गौतम ! वह (हरिणैगमेषी देव) १. एक गर्भाशय से गर्भ को उठा कर दूसरे गर्भाशय में नहीं रखता, ३. जोणीओ गब्भं साहरइ? ४. जोणीओ जोणिं साहरइ? उ. गोयमा ! १. नो गब्भाओ गब्भं साहरइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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