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________________ देव गति अध्ययन - १४१९) गहदंडा इवा, गहमूसला इवा, गहगज्जिया इवा, गहजुद्धा इवा, गहसिंघाडगा इवा, गहावसव्या इवा, अब्भा इवा, अब्भरुक्खा इवा.संझाइवा,गंधव्यनगरा इवा, उक्कापाया इवा, दिसीदाहा इवा, गज्जिया इवा, विज्जुया इवा, पंसुवुट्ठी इवा, जूवेइ वा, जक्खालित्ते इ वा, धूमिया इ वा,महिया इ वा, रयुग्घाया इ वा, चंदोवरागा इ वा, सूरोवरागा इ वा, चंदपरिवेसा इ वा, सूरपरिवेसा इवा, पडिचंदा इवा, पडिसूरा इवा, इंदधणू इवा, उदगमच्छ, कपिहसिय, अमोह-पाइणवाया इ वा, पडीणवाया इ वा जाव संवट्टयवाया इ वा, गामदाहा इ वा, जाव सन्निवेसदाहा इ वा, पाणक्खया जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणब्भूया, अणारिया जे याऽवन्ने तहप्पगाराणं ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो अण्णाया अदिट्ठा असुया अमुया अविण्णाया, तेसिं वा सोमकाइयाणं देवाणं। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो इमे अहावच्चा अभिण्णाया होत्था,तं जहा१. इंगालए, २. वियालए, ३. लोहियक्खे, ४. सणिच्छरे, ५. चंदे, ६. सूरे, ७. सुक्के, ८. बुहे, ९. बहस्सई, १0. राहू। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सत्तिभागं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता,एमहिड्ढीएजाव एमहाणुभागे सोमे महाराया। ग्रहदण्ड, ग्रहमूसल, ग्रहगर्जित, ग्रहयुद्ध, ग्रह-शृंगाटक, ग्रह प्रतिकूलचाल अभ्र बादल, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या, गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गर्जित, विद्युत् (बिजली चमकना) धूल-वृष्टि, यूप, यक्षादीप्त धूमिका, महिका, रज-उद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष (चन्द्रमण्डल) सूर्यपरिवेष (सूर्यमण्डल) प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशा का वात, पश्चिम दिशा का वात यावत संवर्तक वात,ग्रामदाह.यावत सन्निवेशदाह,प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत अनार्य (पापरूप) तथा उस प्रकार के दूसरे सभी कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अविस्मृत और अविज्ञात (अनजान में) नहीं होते हैं। अथवा वे सब कार्य सोमकायिक देवों से भी अज्ञात नहीं होते, अर्थात् उनकी जानकारी में ही होते हैं। प. २. कहि णं भंते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिढे णाम महाविमाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स दाहिणेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई वोईवइत्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिढे णामं महाविमाणे पण्णत्ते, अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ रायहाणी तहेव जाव पासायपंतीओ। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज के ये देव यथापत्यरूप पुत्ररूप से अभिज्ञात (जाने हुए) होते हैं, यथा१. अंगारक (मंगल) २. विकालिक, ३. लोहिताक्ष, ४. शनैश्चर, ५. चन्द्र, ६. सूर्य, ७. शुक्र, ८. बुध, ९. बृहस्पति, १०. राहु। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की कही गई है और उसके द्वारा अपत्यरूप से माने गए देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। इस प्रकार सोम-महाराज महाऋद्धि वाला यावत् महाप्रभाव वाला है। प्र. २. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ कहा गया है? उ. गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्यात हजार योजन आगे चलने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहा गया है, जो साढ़े बारह योजन लम्बा चौड़ा है, इस विमान का समग्र वर्णन अभिषेक पर्यन्त सोम महाराज के विमान की तरह कहना चाहिए। इसी प्रकार राजधानी और प्रासादों की पंक्तियों का वर्णन भी कहना चाहिए। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा, सेवा, उपपात, आदेश और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथायमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेव कायिक, असुरकुमार, असुरकुमारियाँ, कन्दर्प, नरकपाल, आभियोगिक ये और इसी प्रकार के वे सब देव जो उस यम महाराज की भक्ति में तत्पर हैं, उसके पक्ष के हैं, उसके भृत्य हैं, ये सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा सेवा उपपात आदेश और निर्देश में रहते हैं। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य समुत्पन्न होते हैं, यथा सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो इमे देवा आणा-उववाय-वयण- निद्देसे चिट्ठति,तं जहाजमकाइया इ वा, जमदेवकाइया इ वा, पेयकाइया इ वा, पेयदेवकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयवाला आभिओगा जे याऽवन्ने तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो आणा-उववायवयण-निदेसे चिट्ठति। जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जति,तं जहा
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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