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________________ १४१८ द्रव्यानुयोग-(२) प्र. १. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहाँ कहा गया है? उ. गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम और रमणीय भूभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूपों से भी बहुत योजन ऊपर यावत् पांच अवतंसक कहे गए हैं, यथा प. १. कहि णं भन्ते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो संझप्पभेणामं महाविमाणे पण्णते? उ. गोयमा ! जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसम-रमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं-चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारा रूवाणं बहूई जोयणाई जाव पंच वडिंसया पण्णत्ता, तं जहा१. असोयवडिंसए,.. २. सत्तवण्णवडिंसए, ३. चंपयवडिंसए, ४. चूयवडिंसए, ५. मज्झे सोहम्मवडिंसए। तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरथिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाई जोयणाई वीईवइत्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो संझप्पभे नाम महाविमाणे पण्णत्ते। अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, ऊयालीयं जोयणसयसहस्साई बावण्णं च सहस्साई अट्ठ य अड़याले जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। जा सूरियाभविमाणस्स वत्तव्वया सा अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अभिसेयोणवरं-सोमे देवे संझप्पभस्स णं महाविमाणस्स अहे सपक्खि सपडिदिसिं असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सोमा नाम रायहाणी पण्णत्ता, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं जंबूद्दीवपमाणा। वेमाणियाणं पमाणस्स अद्धं नेयव्वं जाव उवरियलेणं सोलस जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं, पण्णासं जोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते। पासायाणं चत्तारि परिवाडीओ नेयव्वाओ, सेसा नत्थि। १. अशोकावतंसक, २. सप्तपर्णावतंसक, ३. चम्पकावतंसक, ४. चूतावतंसक, ५. मध्य में सौधर्मावतंसक। उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पूर्व में, सौधर्मकल्प में असंख्यात योजन दूर जाने के बाद वहाँ पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहा गया है। जिसकी लम्बाई-चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है। उसकी परिधि उनचालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस योजन से कुछ अधिक की कही गई है। इस विमान का समग्र वर्णन अभिषेक पर्यन्त सूर्याभदेव के विमान के समान कहना चाहिए। विशेष-सूर्याभदेव के स्थान में “सोमदेव'"कहना चाहिए। सन्ध्याप्रभ महाविमान के ठीक नीचे आमने-सामने असंख्यात लाख योजन आगे (दूर) जाने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नाम की राजधानी कही गई है, जो जम्बूद्वीप के समान एक लाख योजन लम्बी-चौड़ी है। वैमानिकों के प्रासादआदिकों से यहां प्रासाद आदि का परिमाण यावत घर के ऊपर के पीठबन्ध तक आधा कहना चाहिए। घर के पीठबन्ध का आयाम विष्कम्भ सोलह हजार योजन है, उसकी परिधि पचास हजार पांच सौ सत्तानवे योजन से कुछ अधिक कही गई है। प्रासादों की चार परिपाटियां कहनी चाहिए। शेष वर्णन नहीं कहना चाहिए। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की आज्ञा सेवा आदेश और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथासोमकायिक, सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमार, विद्युतकुमारियां, अग्निकुमार, अग्निकुमारियां, वायुकुमार, वायुकुमारियां, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप ये तथा इसी प्रकार के दूसरे सब उसकी भक्ति वाले, उसके पक्ष वाले, उससे भरण-पोषण पाने वाले देव उसकी आज्ञा सेवा उपपात आदेश और निर्देश में रहते हैं। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उववाय-वयण निदेसे चिट्ठति,तं जहासोमकाइया इ वा, सोमदेवकाइया इ वा, विज्जुकुमाराविज्जुकुमारीओ, अग्गिकुमारा-अग्गिकुमारीओ, वाउकुमारा-वाउकुमारीओ, चंदा-सूरा-गहा-नक्खत्तातारारूवा, जे याऽवन्ने तहप्पगारा सव्वे से तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठति। जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जति,तं जहा इस जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में जो ये कार्य होते हैं, यथा १. धर्मकथानुयोग भाग २, खण्ड ४, पृष्ठ ११-१२५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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