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________________ ( १३८० - उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। ववगयरोगायंका णं ते मणुयगणां पण्णत्ता समणाउसो! प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे दीवे अइवासाइ वा, मंदवासाइ वा, सुवुट्ठीइ वा, मंदवुट्ठीइ वा, उद्दावाहाइ वा, पवाहाइ वा, दगुब्भेयाइ वा, वगुप्पीलाइ वा, गामवाहाइ वा जाव सन्निवेसवाहाइ वा पाणक्खय जाव वसणभूयमणारियाई वा? द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! ये सब उपद्रव-रोगादि वहाँ नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य सब प्रकार के रोग और आतंकों मुक्त कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में अतिवृष्टि, सुवृष्टि, अल्प वृष्टि, दुर्वृष्टि, उद्वाह (तीव्रता से जल का बहना), प्रवाह, उदकभेद (ऊँचाई से जल गिरने से खड्डे पड़ जाना), उदकपीड़ा (जल का ऊपर उछलना) गांव को बहा ले जाने वाली वर्षा यावत सन्निवेश को बहा ले जाने वाली वर्षा और उससे होने वाला प्राणक्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि होते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य जल से होने वाले उपद्रवों से रहित कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में लोहे की खान, तांबे की खान, सीसे की खान, सोने की खान, रत्नों की खान, वज्र-हीरों की खान, वसुधारा (धन की धारा), सोने की वृष्टि, चांदी की वृष्टि, रत्नों की वृष्टि, वजों-हीरों की वृष्टि, आभरणों की वृष्टि, पत्र-पुष्प-फल बीज-माल्य-गन्ध-वर्ण-चूर्ण की दृष्टि, दूध की वृष्टि, रत्नों की वर्षा, हिरण्य-सुवर्ण उसी प्रकार यावत् चूर्णों की वर्षा, सुकाल, दुष्काल, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, सस्तापन, मंहगापन, क्रय-विक्रय-सन्निधि, सन्निचय, निधि, निधान, बहुत पुराने जिनके स्वामी नष्ट हो गये, जिनमें नया धन डालने वाला कोई न हो, जिनके गोत्रीजन सब मर चुके हों ऐसे जो गांवों में, नगर में, आकर-खेट-कर्बट-मडंबद्रोणुमख-पट्टन आश्रम, संबाह और सन्निवेशों में रखा हुआ, शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख महामार्गों पर, नगर की गटरों में, श्मशान में, पहाड़ की गुफाओं में ऊँचे पर्वतों के उपस्थान और भवनगृहों में रखा हुआ (गड़ा हुआ) धन है? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगयदगोवद्दवा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुय दीवे दीवे अयागराइ वा, तंबागराइ वा, सीसागराइ वा, सुवण्णागराइ वा, रयणागराइ वा, वइरागराइ वा, वसुहाराइ वा, हिरण्णवासाइ वा, सुवण्णवासाइ वा, रयणवासाइ वा, वइरवासाइ वा, आभरणवासाइ वा, पत्तवासाइ वा, पुप्फवासाइ वा, फलवासाइ वा, बीयवासाइ वा, मल्लवासाइ वा, गंधवासाइ वा, वण्णवासाइ वा, चुण्णवासाइ वा, खीरवुट्ठीइ दा, रयणवुट्ठीइ वा, हिरणवुट्ठीइ वा, सुवण्णवुट्ठीइ वा, तहेव जाव चुण्णवुट्ठीइ वा, सुकालाइ वा, दुकालाइ वा, सुभिक्खाइ वा, दुब्भिक्खाइ वा, अप्पग्घाइ वा, महग्याइ वा, कयाइ वा, विक्कयाइ वा, सण्णिहीइ वा, संचयाइ वा, निधीइ वा, निहाणाइ वा, चिरपोराणाइ वा, पहीण सामियाइ वा, पहीणसेउयाइ वा, पहीणगोत्तागाराई वा जाई इमाई गामागर-णगर-खेड कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासमसंवाह-सन्निवेसेसु सिंघाडग-तिग-चउक्कचच्चर-चउमुह-महापहपहेसु णगरणिद्धमणसुसाण गिरिकंदर संति सेलोवट्ठाण भवणगिहेसु सन्निक्खित्ताई चिट्ठति? | उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। -जीवा. पडि.३ सु.१११/१५-१६ १०४. एगोरुयदीवस्स मणुयाणं ठिई परूवणं प. एगोरुयदीवे णं भन्ते ! दीवे मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइ भाग। -जीवा. पडि.३, सु. १११/१७ (क) १०५. एगोरुयदीवस्स मणूसेहिं मिहुणगस्स संगोपणं देवलोएसु उप्पत्ति य परूवणंप. ते णं मणुसस्स कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जति? उ. गोयमा ! ते णं मणुया छम्मासावसेसाउया मिहुणाई पसवंति, अउणासीई राइंदियाई मिहुणाई सारक्खंति संगोविंति य सारक्खित्ता संगोवित्ता उस्ससित्ता निस्ससित्ता कासित्ता छीइत्ता अक्किट्ठा अव्वहिया, उ. गौतम ! यह सब वहाँ नहीं हैं। १०४. एकोरुक द्वीप में मनुष्यों की स्थिति का प्ररूपण प्र. भन्ते ! एकोरुक द्वीप के मनुष्यों की स्थिति कितनी कही उ. गौतम ! जघन्य असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। १०५. एकोरुक द्वीप के मनुष्यों द्वारा मिथुनक का पालन और देवलोकों में उत्पत्ति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! वे मनुष्य कालमास में काल करके-मरकर कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे मनुष्य छह मास की आयु शेष रहने पर एक मिथुनक (युगलिक) को जन्म देते हैं। उन्यासी (७९) रात्रिदिन तक उसका पालन-पोषण करते हैं और पालन-पोषण करके ऊर्ध्वश्वास लेकर निश्वास लेकर
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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