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________________ १३६८ २. समुदं तरामीतेगे गोप्पयं तरइ, ३. गोप्पयं तरामीतेगे समुद्धं तरई, ४. गोप्पयं तरामीलेगे गोप्पयं तरह। (२) चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा१. समुदं तरेत्ता णाममेगे समुद्दे विसीय, २. समुदं तता णाममेगे गोप्पए विसीयइ, ३. गोप्ययं तरेत्ता णाममेगे समुद्दे विसीयद्द, ४. गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए विसीयइ । ९६. सत्त विवक्खया पुरिसाणं पंचभंग परूवणंपंचविहा पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. हिरिसते, २. हिरिमणसत्ते, ३. चलसते, ४. थिरसत्ते', ५. उदयणसत्ते। - ठाणं अ. ४, उ. ४, सु. ३५९ ९७. मणुस्साणं छब्बिहत परूवणंछव्विहा मणुरसा पण्णत्ता, तं जहा१. जम्बूद्दीवगा, २. धायइसंहदीवपुरत्थिमद्धगा, ३. धायइसंडदीवपच्चत्थिमद्धगा, ४. पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धगा, ५. पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धगा, ६. अंतरदीवगा। अहवा- छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा - ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४५२ १. कम्मभूमगा २. अकम्मभूमगा, ३. अंतरदीवगा, ४. गन्भचक्कंतियमणुस्सा कम्मभूमगा " ५. अकम्मभूमगा, ६. अंतरदीवगा। १. अरहंता, ३. बलदेवा, ५. चारणा, " -ठाणं. अ. ६, सु. ४९० ९८. इडि अणिमंत मणुस्साणं छव्हित्त परूवणं छव्हिा इश्विमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा - २. चक्कवट्टी, ४. वासुदेवा, ६. विज्जाहरा । द्रव्यानुयोग - (२) २. कुछ तैराक समुद्र को पार करने का संकल्प करते हैं परन्तु गोष्पद (लघु जलाशय) को तैरते हैं, ३. कुछ तैराक गोष्पद को पार करने का संकल्प करते हैं परन्तु संसार समुद्र को तैर जाते हैं, ४. कुछ तैराक गोष्पद को तैरने का संकल्प करते हैं और गोष्पद को ही तैरते हैं। (२) तैराक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ तैराक सारे समुद्र को तैरकर किनारे पर आकर विषण्ण ( हताश) हो जाते हैं, २. कुछ तैराक समुद्र को तैरकर गोष्पद में हताश हो जाते हैं, ३. कुछ तैराक गोष्पद को तैरकर समुद्र में हताश हो जाते हैं, ४. कुछ तैराक गोष्पद को तैरकर गोष्पद में ही हताश हो जाते हैं। ९६. सत्व की विवक्षा से पुरुषों के पाँच भंगों का प्ररूपणपुरुष पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. ह्रीसत्व - विकट परिस्थिति में भी लज्जावश कायर न होने वाला, २. हीमनः सत्व- विकट परिस्थिति में भी मन में कायर न होने वाला, ३. चलसत्व - अस्थिरसत्व वाला, ४. स्थिरसत्व-सुस्थिरसत्व वाला, ५. उदयनसत्व - वृद्धिशील सत्व वाला । ९७. मनुष्यों के छः प्रकारों का प्ररूपण मनुष्य छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. जम्बूद्वीप में उत्पन्न, २. धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध में उत्पन्न, ३. धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्द्ध में उत्पन्न, ४. अर्धपुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध में उत्पन्न, ५. अर्धपुष्करवरद्वीप के पश्चिमार्द्ध में उत्पन्न, ६. अन्तद्वीपों में उत्पन्न । अथवा - मनुष्य छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कर्मभूमि में उत्पन्न सम्मूर्च्छिम मनुष्य, २. अकर्मभूमि में उत्पन्न सम्मूर्च्छिम मनुष्य, ३. अन्तद्वीप में उत्पन्न सम्मूर्च्छिम मनुष्य, ४. कर्मभूमि में उत्पन्न गर्भज मनुष्य, ५. अकर्मभूमि में उत्पन्न गर्भज मनुष्य, ६. अन्तद्वीपों में उत्पन्न गर्भज मनुष्य । १८. ऋ अनृद्धिमंत मनुष्यों के छः प्रकारों का प्ररूपणऋद्धिमन्त मनुष्य छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अर्हन्त, २. चक्रवर्ती, ४. वासुदेव ३. बलदेव, ५. चारण, ६. विद्याधर । १. ठाणं अ. ४, उ. ३, सु. ३३१ २. ठाणं. अ. ५, उ. २, सु. ४४० में पाँच प्रकार बताये हैं उनमें प्रारंभ के ४ समान हैं किन्तु पाँचवाँ भेद भावितात्मा अणगार है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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