SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 628
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य गति अध्ययन ९२. इत्थियादिसु कट्ठाइ दिद्रुतेण अंतरस्स चउव्विहत्त परूवणं- (१) चउव्विहे अंतरे पण्णत्ते,तं जहा१. कळंतरे, दलि २. पम्हंतरे, ३. लोहंतरे, ४. पत्थरंतरे। एवामेव इथिए वा पुरिसस्स वा चउव्यिहे अंतरे पण्णत्ते, तंजहा१. कळंतरसमाणे, २. पम्हंतरसमाणे, ३. लोहंतरसमाणे, ४. पत्थरंतरसमाणे। -ठाणं. अ.४, उ.१,सु. २७० ९३. भयगाणं चउप्पगारा(१) चत्तारि भयगा पण्णत्ता,तं जहा१. दिवसभयए, १३६७ ) ९२.स्त्री आदिकों में काष्ठादि के दृष्टान्त द्वारा अन्तर के चतुर्विधत्व का प्ररूपण(१) अन्तर चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. काष्ठान्तर-काष्ठ से काष्ठ का अन्तर-रूप निर्माण की दृष्टि से, २. पक्ष्मान्तर-धागे से धागे का अन्तर-सुकुमारता आदि की दृष्टि से, ३. लोहान्तर-लोहे से लोहे का अन्तर-छेदन शक्ति की दृष्टि से, ४. प्रस्तरांतर-पत्थर का अन्तर-इच्छा पूर्ण करने की क्षमता आदि की दृष्टि से। इसी प्रकार स्त्री से स्त्री का, पुरुष से पुरुष का अन्तर भी चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. काष्ठान्तर के समान-विशिष्ट पदवी आदि की दृष्टि से, २. पक्ष्मान्तर के समान-सुकुमारता आदि की दृष्टि से, ३. लोहान्तर के समान-स्नेह का छेदन करने आदि की दृष्टि से, ४. प्रस्तरांतर के समान-मनोरथ पूर्ण करने की क्षमता आदि की दृष्टि से। ९३. भृतकों के चार प्रकार (१) भृतक (श्रमिक) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. दिवस भृतक-प्रतिदिन का नियत मूल्य लेकर काम करने वाला, २. यात्रा भृतक-यात्रा में सहयोग करने वाला, ३. उच्चत्व भृतक-घण्टों के अनुपात में मूल्य लेकर काम करने वाला, ४. कब्बाड भृतक-हाथों के अनुपात से धन लेकर भूमि खोदने वाला। सुत के चार प्रकारसुत (पुत्र) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अतिजात-पिता से अधिक, २. अनुजात-पिता के समान, ३. अपजात-पिता से हीन, ४. कुलांगार-कुल के लिए अंगारे जैसा, कुल दूषक, कुलकलंक। ९४. प्रसर्पकों के चार प्रकार प्रसर्पक (प्रयत्न करने वाला) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ अप्राप्त भोगों की प्राप्ति के लिए प्रसर्पण (प्रयत्न) करते हैं, २. कुछ पूर्व प्राप्त भोगों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करते हैं, ३. कुछ अप्राप्त सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, ४. कुछ पूर्व प्राप्त सुखों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करते हैं। २. जत्ताभयए, ३. उच्चत्तभयए, ४. कब्बालभयए। -ठाण.अ.४, उ.१,सु.२७१ सुतस्स चउप्पगाराचत्तारि सुता पण्णत्ता,तं जहा१. अइजाए, २. अणुजाए, ३. अवजाए, ४. कुलिंगाले। -ठाणं. अ.४, उ.१,सु.२४० ९४. पसप्पगाणंचउप्पगारा चत्तारि पसप्पगा पण्णत्ता,तं जहा१. अणुप्पन्नाणं भोगाणं उप्पाएत्ता एगे पसप्पए। २. पुबुप्पन्नाणं भोगाणं अविप्पयोगेणं एगे पसप्पए, ३. अणुप्पन्नाणं सोक्खाणं उप्पाएत्ता एगे पसप्पए, ४. पुव्वुप्पन्नाणं सोक्खाणं अविप्पयोगेणं एगे पसप्पए। -ठाण. अ.४,उ.४,सु.३३९ ९५. तरगाणं चउप्पगारा(१) चत्तारि तरगा पण्णत्ता,तं जहा१. समुदं तरामीतेगे समुदं तरइ, ९५. तैराकों के चार प्रकार (१) तैराक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ तैराक (साधक) संसार समुद्र को तैरने (पार करने) का संकल्प करते हैं और उसे पार करते हैं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy