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________________ मनुष्य गति अध्ययन - १३६१) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. सुंबकडसमाणे, २. विदलकडसमाणे, ३. चम्मकडसमाणे, ४. कंबलकडसमाणे। -ठाणं.अ.४, उ.४,सु.३५० ८१. मधुसित्थाइगोलाण दिद्रुतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं (१) चत्तारि गोला पण्णत्ता,तं जहा१. मधुसित्थगोले, २. जउगोले, ३. दारुगोले, ४. मट्टियागोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. मधुसित्थगोलसमाणे, २. जउगोलसमाणे, ३. दारुगोलसमाणे, ४. मट्टियागोलसमाणे। (२) चत्तारि गोला पण्णत्ता,तं जहा१. अयगोले, २. तउगोले, ३. तंबगोले, ४. सीसगोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अयगोलसमाणे, २. तउगोलसमाणे, ३. तंबगोलसमाणे, ४. सीसगोलसमाणे। (३) चत्तारि गोला पण्णत्ता,तं जहा१. हिरण्णगोले, २. सुवण्णगोले, ३. रयणगोले ४. वयरगोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. हिरण्णगोलसमाणे, २. सुवण्णगोलसमाणे, ३. रयणगोलसमाणे, ४. वयरगोलसमाणे। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३५० ८२. कूडागार दिह्रतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं (२) चत्तारि कूडागारा पण्णत्ता,तं जहा इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सुम्बकट के समान-अल्प प्रतिबंध वाला, २. विदलकट के समान-बहुप्रतिबंध वाला, ३. चर्मकट के समान-बहुतर प्रतिबंध वाला, ४. कम्बलकट के समान-बहुतम प्रतिबंध वाला। ८१. मधुसिक्थादि गोलों के दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) गोले चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. मधुसिक्थ-मोम का गोला, २. जतु-लाख का गोला, ३. दारु-काष्ठ का गोला, ४. मृत्तिका मिट्टी का गोला। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. मोम के गोले के समान कोमल, २. लाख के गोले के समान मजबूत, ३. काष्ठ के गोले के समान कठोर, ४. मिट्टी के गोले के समान कठोरतम। (२) गोले चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. लोहे का गोला, २. त्रपु-राँगे का गोला, ३. ताँबे का गोला, ४. शीशे का गोला। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. लोहे के गोले के समान, २. राँगे के गोले के समान, ३. ताँबे के गोले के समान, ४. शीशे के गोले के समान। (३) गोले चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. हिरण्य-चाँदी का गोला, २. सुवर्ण-सोने का गोला, ३. रल का गोला, ४. वजरल (हीरे) का गोला। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. हिरण्य के गोले के समान, २. सुवर्ण के गोले के समान, ३. रत्न के गोले के समान, ४. वज्ररल के गोले के समान। १. गुत्ते णाममेगे गुत्ते, २. गुत्ते णाममेगे अगुत्ते, ३. अगुत्ते णाममेगे गुत्ते, ४. अगुत्ते णाममेगे अगुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गुत्ते णाममेगे गुत्ते, ८२. कूटागार के दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(२) कूटागार (शिखर सहित घर) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. एक बाहर से गुप्त है और भीतर से भी गुप्त है, २. एक बाहर से गुप्त है परन्तु भीतर से अगुप्त है, ३. एक बाहर से तो अगुप्त है, परन्तु भीतर से गुप्त है, ४. एक बाहर और भीतर दोनों ओर से अगुप्त है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गुप्त होकर गुप्त होते हैं, वस्त्र पहने हुए होते हैं और उनकी इन्द्रियाँ भी गुप्त होती हैं। २. कुछ पुरुष गुप्त होकर अगुप्त होते हैं-वस्त्र पहने हुए होते हैं, किन्तु उनकी इन्द्रियाँ गुप्त नहीं होती। ३. कुछ पुरुष अगुप्त होकर गुप्त होते हैं, वस्त्र पहने हुए नहीं होते, किन्तु उनकी इन्द्रियाँ गुप्त होती हैं। ४. कुछ पुरुष अगुप्त होकर अगुप्त होते हैं, न वस्त्र पहने हुए होते हैं और न उनकी इन्द्रियाँ ही गुप्त होती हैं। २. गुत्ते णाममेगे अगुत्ते, ३. अगुत्ते णाममेगे गुत्ते, ४. अगुत्ते णाममेगे अगुत्ते।। -ठाणं. अ.४, उ.१,सु.२७५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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