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________________ १३५२ ७२. जाइ-कुल-बल-रूव-जय संपण्ण पकंथग दिट्ठतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो कुलसंपण्णे, २. कुलसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, कुलसंपण्णे वि, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो कुलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो कुलसंपण्णे, २. कुलसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे दि, कुलसंपण्णे वि, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो कुलसंपण्णे। (२) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तंजहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, २. बलसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, बलसंपण्णे वि, ४. एगे णो जाति संपण्णे, णो बलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, २. बलसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, बलसंपण्णे वि, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो बलसंपण्णे। (३) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो रूवसंपण्णे, २. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, रूवसंपण्णे वि, ४. एगे णो जातिसंपण्णे, णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो रूवसंपण्णे, २. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, रूवसंपण्णे वि, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो रूवसंपण्णे। (४) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो जयसंपण्णे, २. जयसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि, ४. एगे णो जातिसंपण्णे,णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो जयसंपण्णे, २. जयसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो जयसंपण्णे। द्रव्यानुयोग-(२) ७२. जाति-कुल-बल-रूप और जय संपन्न अश्व के दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ घोड़े कुल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं और कुल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न कुल-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और कुल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न कुल-सम्पन्न होते हैं। (२) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ घोड़े बल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न बल-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न बल-सम्पन्न होते हैं। (३) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ घोड़े रूप-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न होते हैं। (४) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, जय-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ घोड़े जय-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, जय-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष जय-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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