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________________ मनुष्य गति अध्ययन एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. बलसंपन्ने णाममेगे, नो रूवसंपन्ने, २. रूवसंपन्ने णाममेगे, नो बलसंपन्ने, ३. एगे बलसंपन्ने वि, रूवसंपन्ने वि, ४. एगे नो बलसंपन्ने, नो रूवसंपन्ने। -ठाणं. अ.४, उ.२, सु.२८१ ७१. आइण्ण खलुक पकथक दिळेंतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं- (१) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा१. आइण्णे णाममेगे आइण्णे, २. आइण्णे णाममेगे खलुंके, ३. खलुके णाममेगे आइण्णे, ४. खलुके णाममेगे खलुके। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आइण्णे णाममेगे आइण्णे, २. आइण्णे णाममेगे खलुंके, १३५१ इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, किन्तु बल-सम्पन्न नहीं होते, ३. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न भी होते हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न बल-सम्पन्न ही होते हैं और न रूप-सम्पन्न ही होते हैं। ७१. आकीर्ण और खलुक अश्व के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े पहले भी आकीर्ण (तेज गति वाले) होते हैं और पीछे भी आकीर्ण (तेज गति वाले) रहते हैं, २. कुछ घोड़े पहले आकीर्ण (तेज गति वाले) होते हैं, किन्तु पीछे खलुक (मन्द गति वाले) हो जाते हैं, ३. कुछ घोड़े पहले खलुक (मन्द गति वाले) होते हैं, किन्तु पीछे आकीर्ण (तेज गति वाले) हो जाते हैं, ४. कुछ घोड़े पहले भी खलुक (मन्द गति वाले) होते हैं और पीछे भी खलुक (मन्द गति वाले) रहते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष पहले भी आकीर्ण (गुणवान) होते हैं और पीछे भी आकीर्ण (गुणी) रहते हैं, २. कुछ पुरुष पहले आकीर्ण (गुणी) होते हैं, किन्तु पीछे खलुक (अवगुणी) हो जाते हैं, ३. कुछ पुरुष पहले खलुक (अवगुणी) होते हैं, किन्तु पीछे आकीर्ण (गुणी) हो जाते हैं, ४. कुछ पुरुष पहले भी खलुक (अवगुणी) होते हैं और पीछे भी खलुक (अवगुणी) रहते हैं। (२) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े आकीर्ण (तेज गति वाले) होते हैं और आकीर्णता (तेज गति वाले जैसा) का ही व्यवहार करते हैं, २. कुछ घोड़े आकीर्ण (तेज गति वाले) होते हैं, परन्तु खलुंकता का (मन्द गति वाले जैसा) व्यवहार करते हैं, ३. कुछ घोड़े खलुक (मन्द गति वाले) होते हैं, परन्तु आकीर्णता (तेज गति वाले जैसा) का व्यवहार करते हैं, ४. कुछ घोड़े खलुक (मन्द गति वाले) होते हैं और खलुंकता (मन्द गति वाले जैसा) का ही व्यवहार करते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आकीर्ण (गुणी) होते हैं और आकीर्णता का (गुणी जैसा) ही व्यवहार करते हैं, २. कुछ पुरुष आकीर्ण (गुणी) होते हैं, परन्तु खलुकता का (अवगुणी जैसा) व्यवहार करते हैं, ३. कुछ पुरुष खलुंक (अवगुणी) होते हैं, परन्तु आकीर्णता का (गुणी जैसा) व्यवहार करते हैं, ४. कुछ पुरुष खलुक (अवगुणी) होते हैं और खलुकता का (अवगुणी जैसा) ही व्यवहार करते हैं। ३. खलुके णाममेगे आइण्णे, ४. खलुके णाममेगे खलुके। (२) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा१. आइण्णे णाममेगे आइण्णयाए वहइ, २. आइण्णे णाममेगे खलुकयाए वहइ, ३. खलुके णाममेगे आइण्णयाए वहइ, ४. खलुके णाममेगे खलुंकयाए वहइ। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आइण्णे णाममेगे आइण्णयाए वहइ, २. आइण्णे णाममेगे खलुकयाए वहइ, ३. खलुके णाममेगे आइण्णयाए वहइ, ४. खलुके णाममेगे खलुकयाए वहइ। -ठाणं. अ.४,उ.३,सु.३२८
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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