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________________ मनुष्य गति अध्ययन (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. सदं ण सुणामीतेगे सुमणे भवइ, २. सर्दण सुणामीतेगे दुम्मणे भवइ. ३. सदं ण सुणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ । (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. सदं ण सुणिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. सदं ण सुणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ. ३. सदं ण सुणिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवइ । - ठाणं अ. ३, उ. २, सु. १६८ (९८-१०३) १९. दंसण विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. रूवं पासित्ता णामेगे सुमणे भवइ. २. रूवं पासित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. रूयं पासित्ता णामेगे णोसुमणे गोदुम्मणे भवइ । (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. रूयं पासामीतेगे सुमणे भवइ, २. रूयं पासामीलेगे दुम्मणे भवइ. ३. रूवं पासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ । (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. रूवं पासिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. रूवं पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रूवं पासिस्सामीतेगे णोसुमणे- गोदुम्मणे भवइ । (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, संजहा १. रूवं अपासित्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. रूवं अपासित्ता णायेगे दुम्मणे भवइ, ३. रूवं अपासित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ । (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. रूवंण पासामीतेगे सुमणे भवंइ, २. रूवंण पासामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रूवं ण पासामीतेगे णोमणे - गोदुम्मणे भवइ । (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. रूवं ण पासिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. रूवंण पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रूवं ण पासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ । - ठाणं अ. ३, उ. २, सु. १६८ (१०४-१०९) (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। १३११ (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं. २. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष शब्द नहीं सुनूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। १९. देखने की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण (१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को देखकर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप को देखकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को देखकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को देखता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप को देखता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को देखता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को देखूंगा इसलिए सुमनस्क होते हैं. २. कुछ पुरुष रूप को देखूंगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को देखूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को न देखकर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप को न देखकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को न देखकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को न देखता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप को न देखता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को न देखता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप को नहीं देखूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप को नहीं देखूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप को नहीं देखूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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