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________________ गति अध्ययन उ. गोयमा ! अणाइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। -जीवा. पडि.९, सु.२३१ १४. पढमापढम चउगईसु सिद्धस्स य अंतरकाल परूवणं ( १२४९ ) उ. गौतम ! अनादि अपर्यवसित का अन्तर नहीं है, अनादि सपर्यवसित का भी अंतर नहीं है। पण १४. प्रथम-अप्रथम चार गतियों और सिद्ध के अंतरकाल का प्ररूपणप्र. भन्ते ! प्रथम समय के नैरयिक का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय के नैरयिक का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। प्र. भन्ते ! प्रथम समय के तिर्यञ्चयोनिक का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम दो क्षुद्र भव ग्रहण, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय के तिर्यञ्चयोनिक का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय अधिक क्षुद्र भव ग्रहण, उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम शत पृथक्त्व। प्र. भन्ते ! प्रथम समय के मनुष्य का अन्तर काल कितना है ? प. पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई ____ अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। प. अपढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। प. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। प. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं। प. पढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। प. अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं ___होइ? . उ. गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डाग भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। देवस्स णं अंतरं जहाणेरइयस्स। प. पढमसमयसिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! णत्थि अंतरं। प. अपढमसमयसिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! साईयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं। -जीवा. पडि.९,सु.२५९ १५. पंच अट्ठ वा गई पडुच्च जीवाणं अप्पबहुत्तं उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम दो क्षुद्र भव ग्रहण, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय के मनुष्य का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय अधिक क्षुद्र भव ग्रहण, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। देव का अन्तर काल नैरयिक जैसा है। प्र. भन्ते ! प्रथम समय के सिद्ध का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! अन्तर काल नहीं है। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय के सिद्ध का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! सादि अपर्यवसित का अन्तर काल नहीं है। प. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं देवाणं सिद्धाण य पंचगइ समासेणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सा, १५. पांच या आठ गतियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! इन नारकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों, देवों और सिद्धों की पांच गतियों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प मनुष्य हैं, १. (क) जीवा. पडि.७.सु.२२७ (ख) जीवा. पडि.९,सु.२५७
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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