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________________ गति अध्ययन १२४३ ३३. गई-अज्झयणं ३३. गति-अध्ययन सूत्र सूत्र १. पांच प्रकार की गतियों के नाम गतियां पांच कही गई हैं, यथा१. नरकगति, २. तिर्यञ्चगति ३. मनुष्यगति, ४. देवगति, ५. सिद्धगति। २. आठ प्रकार की गतियों के नाम गतियां आठ कही गई हैं, यथा१. नरकगति, २. तिर्यञ्चगति, ३. मनुष्य गति, ४. देवगति, ५. सिद्धगति, ६. गुरुगति, ७. प्रणोदनगति. ८. प्राग्भारगति। १. पंचविह गई नामाइं पंच गईओ पन्नत्ताओ,तं जहा१. निरयगई, २. तिरियगई, ३. मणुयगई, ४. देवगई, ५. सिद्धिगई। -ठाणं. अ. ५, उ.३,सु. ४४२ २. अट्ठविहगई नामाइं अट्ठगईओ पन्नत्ताओ,तं जहा१.णिरयगई, २. तिरियगई, ३. मणुयगई, ४. देवगई, ५. सिद्धिगई, ६. गुरुगई, ७. पणोल्लण गई, ८. पब्भार गई। -ठाणं.अ.८,सु.६३० ३. दसविहगई नामाई दसविहा गई पन्नत्ता,तं जहा१. निरयगई, २. निरयविग्गहगई, ३. तिरियगई, ४. तिरियविग्गहगई, ५. मणुयगई, ६. मणुयविग्गहगई, ७. देवगई, ८. देवविग्गहगई, ९. सिद्धिगई, १०. सिद्धिविग्गहगई। -ठाणं.अ.१०,सु.७४५ ४. दुग्गईसुगईभेय परूवणं चत्तारि दुग्गईओ पन्नत्ताओ,तं जहा१.णेरइयदुग्गई, २. तिरिक्खजोणियदुग्गई, ३. मणुस्सदुग्गई, ____४. देवदुग्गई। चत्तारि सोग्गईओ पन्नत्ताओ,तं जहा१. सिद्धसोग्गई, २. देवसोग्गई, ३. मणुयसोग्गई, ४. सुकुलपच्चायाई। -ठाणं.अ.४, सु.२६७ ५ दुग्गई-सुगईसुय गमन हेउ परवणं पंचठाणा अपरिण्णाया जीवाणं दुग्गइगमणाए भवंति, तं जहा१.सद्दा,२.रूवा, ३.गंधा, ४.रसा, ५. फासा। पंच ठाणा सुपरिन्नाया जीवाणं सुगइगमणाए भवंति,तं जहा ३. दस प्रकार की गतियों के नाम गति दस प्रकार की कही गई है, यथा१. नरकगति, २. नरकविग्रहगति, ३. तिर्यञ्चगति, ४. तिर्यञ्चविग्रहगति, ५. मनुष्यगति, ६. मनुष्यविग्रहगति, ७. देवगति, ८. देवविग्रहगति, ९. सिद्धगति, १०. सिद्धविग्रहगति। ४. दुर्गति सुगति के भेदों का प्ररूपण दुर्गति चार प्रकार की कही गई है, यथा१. नैरयिक दुर्गति, २. तिर्यक्योनिक दुर्गति, ३. मनुष्य दुर्गति, ४. देव दुर्गति। सुगति चार प्रकार की कही गई है, यथा१. सिद्ध सुगति, २. देव सुगति, ३. मनुष्य सुगति, ४. सुकुल में जन्म (होना) ५. दुर्गति और सुगति में गमन हेतु का प्ररूपण ये पांच स्थान जब परिज्ञात नहीं होते तब ये जीवों के दुर्गति गमन के हेतु होते हैं, यथा१. शब्द, २.रूप, ३. गंध, ४. रस, ५. स्पर्श। ये पांच स्थान जब सुपरिज्ञात होते हैं तब वे जीवों के सुगतिगमन के हेतु होते हैं, यथा१. शब्द यावत् ५. स्पर्श। १. सद्दा जाव ५. फासा। -ठाण.अ.५, उ.१.सु.३९०/१२-१३ पंचहिं ठाणेहिं जीवा दोग्गई गच्छंति,तं जहा१. पाणाइवाएणं, २. मुसावाएणं, ३. अदिनादाणेणं, ४. मेहुणेणं, ५. परिग्गहेणं। १. ठाणं.अ.३,उ.३, सु.१८७(१-२) पांच स्थानों से जीव दुर्गति में जाते हैं, यथा१. प्राणातिपात से, २. मृषावाद से, ३. अदत्तादान से, ४. मैथुन से, ५. परिग्रह से।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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