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________________ कर्म अध्ययन १.अमणुण्णा सद्दा जाव ८.कायदुहया।' जं वेएइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गलपरिणाम वा, वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं असायावेयणिज्ज कम्मं वेएइ एस णं गोयमा ! असायावेयणिज्जे कम्मे। एस णं गोयमा ! असायावेयणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते। प. ४. मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा१. सम्मत्तवेयणिज्जे, २. मिच्छत्तवेयणिज्जे, ३. सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे,४. कसायवेयणिज्जे, ५. णो कसायवेयणिज्जे। जं वेदेइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गलपरिणाम वा, वीससा वा, पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं मोहणिज्जं कम वेदेइ। एस णं गोयमा ! मोहणिज्जे कम्मे। एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणाम पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते। । १२०३ ) १. अमनोज्ञ शब्द यावत् ८. कायदुःखता, जो पुद्गल का या पुद्गलों का, पुद्गल परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है। अथवा उनके उदय से असातावेदनीय कर्म का वेदन करता है। गौतम ! यह असातावेदनीय कर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुदगल परिणाम को प्राप्त करके असातावेदनीयकर्म का यह आठ प्रकार का अनुभाव फल कहा गया है। प्र. ४. भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके मोहनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके मोहनीयकर्म का पांच प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. सम्यक्त्व-वेदनीय, २. मिथ्यात्व-वेदनीय, ३. सम्यग्मिथ्यात्व-वेदनीय, ४. कषाय-वेदनीय, ५. नो-कषाय-वेदनीय। जो पुद्गल का या पुद्गलों का पुद्गल परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, अथवा उनके उदय से मोहनीयकर्म का वेदन करता है। गौतम ! यह मोहनीय कर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके मोहनीय कर्म का यह पांच प्रकार अनुभाव (फल) कहा गया है। प्र. ५. भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके आयुकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके आयुकर्म का चार प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. नरकायु, २. तिर्यञ्चायु, ३. मनुष्यायु, ४. देवायु। जो पुद्गल का या पुद्गलों का, पुद्गल-परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, अथवा उनके उदय से आयु कर्म का वेदन करता है, गौतम ! यह आयु कर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके आयुकर्म का यह चार प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है। प्र. ६.(क) भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? प. ५. आउअस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणाम पप्प कइविहे अणुभावे पण्णते? उ. गोयमा ! आउअस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प चउव्विहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा१. नेरइयाउए, २. तिरियाउए, ३. मणुयाउए, ४. देवाउए। जं वेएइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गलपरिणाम वा, वीससा वा, पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं आउयं कम्मं वेदेइ। एस णं गोयमा ! आउएकम्मे। एस णं गोयमा ! आउअस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प चउव्विहे अणुभावे पण्णत्ते। प. ६.(क) सुभणामस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते? १. ठाणं.अ.७,सु.५८८
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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