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________________ १२०२ प. २. दरिसणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दरिसणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते,तं जहा१. णिद्दा, २. णिद्दाणिद्दा, ३. पयला, ४. पयलापयला, ५. थीणगिद्धी, ६. चक्खुदंसणावरणे, ७. अचखुदंसणावरणे, ८. ओहिदसणावरणे, ९. केवलदसणावरणे। जं वेदेइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा,पोग्गलपरिणामं वा, वीससा वा, पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं पासियव्वं ण पासइ, पासिउकामे वि ण पासइ, पासित्ता विण पासइ, उच्छन्नदसणी यावि भवइ दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं। एस णं गोयमा ! दरिसणावरणिज्जे कम्मे। एस णं गोयमा ! दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते। प. (क) सायावेयणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! सायावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते, तंजहा१. मणुण्णा सद्दा, २. मणुण्णा रूवा, ३. मणुण्णा गंधा, ४. मणुण्णा रसा, ५. मणुण्णा फासा, ६. मणोसुहया, ७. वइसुहया, ८. कायसुहया। जं वेएइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गलपरिणामं वा, वीससा वा,पोग्गलाणं परिणाम, तेसिंवा उदएणं सायावेयणिज्जं कम्मं वेएइ। एसणं गोयमा !सायावेयणिज्जे कम्मे। एस णं गोयमा ! सायावेयणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते। प. (ख) असायावेयणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! असायावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते,तं जहा द्रव्यानुयोग-(२)) प्र. २. भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का नौ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. निद्रा, २. निद्रा-निद्रा, ३. प्रचला, ४. प्रचलाप्रचला, ५. स्त्यानगृद्धि (एवं) ६. चक्षुदर्शनावरण, ७. अचक्षुदर्शनावरण, ८. अवधिदर्शनावरण, ९. केवलदर्शनावरण। जो पुद्गल का या पुद्गलों का पुद्गल परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, उनके उदय से देखने योग्य को नहीं देखता, देखना चाहते हए भी नहीं देखता, देखकर भी नहीं देखता और दर्शनावरणीय कर्म के उदय से विच्छिन्न दर्शन वाला भी हो जाता है। गौतम ! यह दर्शनावरणीय कर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गलपरिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का यह नौ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है। प्र. ३.(क) भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके सातावेदनीय कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके सातावेदनीयकर्म का आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. मनोज्ञशब्द, २. मनोज्ञरूप, ३. मनोज्ञगंध, ४. मनोज्ञरस, ५. मनोज्ञस्पर्श, ६. मन का सौख्य, ७. वचन का सौख्य, ८.काया का सौख्य। जो पुद्गल का या पुद्गलों का पुद्गल-परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, अथवा उनके उदय से सातावेदनीयकर्म का वेदन करता है। गौतम ! यह सातावेदनीय कर्म है, हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके सातावेदनीयकर्म का यह आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है। प्र. (ख) भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके असातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है? उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके असातावेदनीय कर्म का आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा १. ठाणं.अ.७,सु.५८८
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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