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________________ कर्म अध्ययन उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। प. असण्णी णं भंते ! जीवा पंचेंद्रिया देवगइणामए कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। प. असण्णी णं भंते ! जीवा पंचेंदिया वेउव्वियसरीरणामए कम्मस्स किं बंधंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त - आहारगसरीरणामए तित्थगरणामए य ण किंचि बंधंति। अवसिठं जहा बेइंदियाणं। णवरं-जस्स जत्तिया भागा तस्स ते सागरोवमसहस्सेणं सह भाणियव्वा। (७-८) सव्वेसिं आणुपुव्वीए जाव अंतराइयस्स। -पण्ण. प.२३, उ.२, सु. १७२८-१७३३ १५३. सण्णी-पंचेंदिएसु अट्ठ-कम्मपयडीणं-ठिईबंध-परूवणं उत्कृष्ट वही पूर्ण सहन सागरोपम के (११/१/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। प्र. भंते ! असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव देवगतिनाम कर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र-सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण सहन सागरोपम के (१/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। प्र. भंते ! असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव वैक्रियशरीरनामकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण सहन सागरोपम के (२/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। (असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव) सम्यक्त्वमोहनीय, सम्यग्मिथ्यात्व मोहनीय, आहारकशरीर-नामकर्म और तीर्थकरनामकर्म का बन्ध नहीं करते हैं। शेष कर्मप्रकृतियों की स्थिति द्वीन्द्रिय जीवों के समान है। विशेष-जिसके जितने भाग हैं, वे सहस्र सागरोपम के साथ कहने चाहिए। (७-८) शेष कर्मप्रकृतियों की स्थिति अन्तरायकर्म तक । अनुक्रम से इसी प्रकार कहनी चाहिए। १५३. संज्ञी पंचेन्द्रियों में आठ कर्म प्रकृतियों की स्थिति बंध का प्ररूपणप्र. १. भंते ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. भंते ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव निद्रापंचककर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य अन्तःकोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। इनका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। २. दर्शनचतुष्क की स्थिति ज्ञानावरणीयकर्म के समान है। ३. ऐर्यापथिकबन्धक और साम्परायिक बन्धक की अपेक्षा सातावेदनीयकर्म की जो औधिक स्थिति कही है उतनी ही कहनी चाहिए। प. १. सण्णी णं भंते ! जीवा पंचेंदिया णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई, कम्मणिसेगो। प. सण्णी णं भंते ! पंचेंदिया णिद्दापंचगस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। २. दंसणचउक्कस्स जहा णाणावरणिज्जस्स। ३. सायावेयणिज्जस्स जहा ओहिया ठिई भणिया तहेव भाणियव्वा, इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइय बंधयंच।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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