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________________ कर्म अध्ययन प. आउयस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठिईबंधए के? उ. गोयमा ! जेणं जीवे असंखेप्पद्धप्पविढे सव्वणिरुद्धे से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउअबंधद्धाए तीसे णं आउअबंधद्धाए, चरिमकालसमयंसि सव्वजहण्णिय ठिइं पज्जत्ता पज्जत्तियं णिव्वत्तेइ। एस णं गोयमा ! आउयकम्मस्स जहण्णठिईबंधए, तव्वइरित्ते अजहण्णे। -पण्ण. प. २३, उ.२,सु. १७४२-१७४४ १४७. कम्मट्ठगस्स उल्कोसठिईबंधग परूवणं प. उक्कोसकालठिईयं णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं किं णेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ? उ. गोयमा !णेरइओ वि बंधइ जाव देवी वि बंधइ। - ११९३ ) प्र. भंते ! आयुकर्म का जघन्य स्थिति-बन्धक कौन है ? उ. गौतम ! सबसे बड़े आयुबन्ध के शेष भाग रूप एक आकर्ष के अंतिम समय में अर्थात् असंक्षेप्य अद्धा में प्रविष्ट और (प्रथम आहारादि तीन पर्याप्तियों से) पर्याप्त तथा (उच्छ्वास पर्याप्ति को पूर्ण करने में असमर्थ) अपर्याप्त जीव होता है। हे गौतम ! वह सर्वजघन्य आयु कर्म का बंधक है उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बंधक होता है। १४७. आठ कर्मों के उत्कृष्ट स्थिति बंधकों का प्ररूपणप्र. भंते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीयकर्म को क्या नैरयिक बांधता है, तिर्यग्योनिक बांधता है या तिर्यग्योनिक स्त्री बांधती है, मनुष्य बांधता है या मनुष्य स्त्री बांधती है, देव बांधता है या देवी बांधती है? उ. गौतम ! उसे नैरयिक भी बांधता है यावत् देवी भी बांधती है। प्र. भंते ! किस प्रकार का नैरयिक उत्कृष्ट स्थिति वाला ज्ञानावरणीयकर्म बांधता है? उ. गौतम ! संज्ञीपंचेन्द्रिय, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग युक्त, जागृत, श्रुत (शब्द श्रवण) में उपयोगवान्, मिथ्यादृष्टि, कृष्णलेश्यावान, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला या किंचित् मध्यम परिणाम वाला नैरयिक, गौतम ! उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को प. केरिसए णं भंते ! णेरइए उक्कोसकालठिईयं ___णाणावरणिज्जं कम्मं बंधइ? उ. गोयमा ! सण्णीपंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्ते सागारे जागरे सुत्तोवउत्ते मिच्छद्दिट्ठी कण्हलेस्से उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे ईसिमज्झिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा ! णेरइए उक्कोसकालठिईयं णाणावरणिज्ज कम्मं बंधइ। बांधता है। प. केरिसए णं भंते ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठिईयं णाणावरणिज्जं कम्मं बंधइ? । उ. गोयमा ! कम्मभूमए वा, कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी पंचेंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए जाव ईसिमज्झिमपरिणामे वा जहाणेरइए एरिसएणं गोयमा ! तिरिक्ख जोणिए उक्कोसकालठिईयं णाणावरणिज्जं कम्मं बंधइ। एवं तिरिक्खजोणिणी वि, मणूसे वि, मणूसी वि। देव-देवी जहाणेरइए। एवं आउयवज्जाणं सत्तण्हं कम्माणं। प्र. भंते ! किस प्रकार का तिर्यञ्चयोनिक उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है? उ. गौतम ! कर्मभूमिक या कर्मभूमिक के सदृश संझीपंचेन्द्रिय, सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त नैरयिक के समान यावत् किंचित् मध्यम परिणाम वाला, हे गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है। इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक स्त्री, मनुष्य और मनुष्य स्त्री भी (उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को) बांधते हैं। देव और देवी का कथन नैरयिक के समान है। आयु को छोड़कर शेष सात कर्मों के बन्धकों के विषय में इसी प्रकार जानना चाहिए। प्र. भंते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयु कर्म को क्या नैरयिक बांधता है यावत् देवी बांधती है? उ. गौतम ! उसे नैरयिक नहीं बांधता है, तिर्यञ्चयोनिक बांधता है, तिर्यञ्चयोनिक स्त्री नहीं बांधती है, मनुष्य बांधता है, मनुष्य स्त्री बांधती है और देव नहीं बांधते हैं और देवी भी नहीं बांधती है। प्र. भंते ! किस प्रकार का तिर्यञ्चयोनिक उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुकर्म को बांधता है? प. उक्कोसकालठिईयं णं भंते ! आउयं कम्मं किं णेरइओ बंधइ जाव देवी बंधइ? उ. गोयमा ! णो णेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, णो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो वि बंधइ, मणुस्सी वि बंधइ, णो देवो बंधइ, णो देवी बंधइ। प. केरिसए णं भंते ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठिईयं आउयं कम्मं बंधइ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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