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________________ ११९२ द्रव्यानुयोग-(२) णवरं-जत्थ एगो सत्तभागो तत्थ उक्कोसेणं दस विशेष-जहां (जघन्य स्थिति) सागरोपम के सात भागों में से सागरोवमकोडाकोडीओ दस य वाससयाई अबाहा, एक भाग(१/७) की हो, वहां उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल एक हजार वर्ष का कहना चाहिए। जत्थ दो सत्तभागा तत्थ उक्कोसेणं वीसं जहां (जघन्य स्थिति) सागरोपम के सात भागों में से दो भाग सागरोवमकोडाकोडीओ वीस य वाससयाई अबाहा, (२/७) की हो, वहां उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल दो हजार वर्ष का कहना चाहिए। ७. गोय-पयडीओ ७. गोत्र की प्रकृतियांप. (क) उच्चागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई प्र. (क) भंते ! उच्चगोत्रकर्म की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? उ. गोयमा !जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ता,१ उ. गौतम ! जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है, दस य वाससयाई अबाहा, इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अबाहूणिया कम्मठिई,कम्मणिसेगो। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प. (ख) णीयागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई प्र. (ख) भंते ! नीचगोत्रकर्म की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? उ. गोयमा ! जहा अपसत्थविहायगइणामस्स। उ. गौतम ! अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म की स्थिति के समान इसकी स्थिति आदि जाननी चाहिए। ८. अंतराइय-पयडीओ ८. अन्तराय की प्रकृतियांप. अंतराइयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई प्र. भंते ! अन्तरायकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। तिण्णि यवाससहस्साई अबाहा, इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक -पण्ण.प.२३, उ.२, सु.१६९७-१७०४ होता है। १४६. कम्मट्ठगस्स जहण्णठिईबंधग परूवणं १४६. आठ कर्मों के जघन्य स्थिति बंधकों का प्ररूपणप. णाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठिईबंधए प्र. भंते ! ज्ञानावरणीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक (बांधने वाला) कौन है? .उ. गोयमा ! अण्णयरे सुहुमसंपराए उवसामए वा, उ. गौतम ! कोई एक सूक्ष्मसम्पराय उपशामक (उपशम श्रेणी खवए वा, वाला) या क्षपक (क्षपक श्रेणी वाला) होता है। एस णं गोयमा ! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स हे गौतम ! यह ज्ञानावरणीय कर्म का जघन्य स्थिति बन्धक जहण्णठिईबंधए, तव्वइरित्ते अजहण्णे। है, उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है। एवं एएणं अभिलावेणं मोहाऽऽउयवज्जाणं इसी प्रकार इस अभिलाप से मोहनीय और आयुकर्म को सेसकम्माणं भाणियव्यं। छोड़कर शेष कर्मों के (जघन्य स्थिति बंधकों के) विषय में कहना चाहिए। प. मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठिईबंधए के? .. प्र. भंते ! मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक कौन है? उ. गोयमा ! अण्णयरे बायरसंपराए उवसामए वा, उ. गौतम ! कोई एक बादरसम्पराय उपशामक या क्षपक खवएवा, होता है। एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स हे गौतम ! यह मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक है, जहण्णठिईबंधए तव्वइरिते अजहण्णे। उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है। १. ठाणं अ.८, सु. ६५८ २. विया.स.१३, उ.८.सु.१ के?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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