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________________ ११८६ (घ) चउरिंदिय जाइणामए वि एवं चेव। प. (ङ) पंचेंदियजाइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। ३.(क)ओरालियसरीरणामए वि एवं चेव। प. (ख) वेउव्वियसरीरणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा. अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. (ग) आहारगसरीरणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ। प. (घ.-ङ) तेयग-कम्मसरीरणामस्स णं भंते ! कम्माणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। द्रव्यानुयोग-(२) (घ) चतुरिन्द्रिय जाति नाम कर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प्र. (छ) भंते ! पंचेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। ३.(क) औदारिक-शरीर-नामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प्र. (ख) भंते ! वैक्रिय-शरीर-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ग) भंते ! आहारक-शरीर-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तःकोडाकोडी सागरोपम की है, उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तःकोडाकोडी सागरोपम की है। प्र. (घ-ङ) भंते ! तैजस्-कार्मण-शरीर-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इनका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। ४. औदारिकशरीरांगोपांग, वैक्रियशरीरांगोपांग और आहारकशरीरांगोपांग इन तीनों नामकर्मों की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। ५. पांचों शरीरबन्ध-नामकर्मों की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। ६. पांचों शरीरसंघात-नामकर्मों की स्थिति आदि शरीर-नामकर्मों की स्थिति के समान है। ७. (क) वज्रऋषभनाराचसंहनन-नामकर्म की स्थिति आदि रति मोहनीय कर्म की स्थिति के समान है। प्र. (ख) भंते ! ऋषभनाराचसंहनन-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के पेंतीस भागों में से छ भाग (६/३५) की है, ४. ओरालिय-बेउब्विय-आहारगसरीरंगोवंगणामए तिण्णि वि एवं चेव। ५. सरीरबंधणामए पंचण्ह विएवं चेव। ६. सरीरसंघायणामए पंचण्ह वि जहा सरीरणामए कम्मस्स ठिई त्ति। ७. (क) वइरोसभणारायसंघयण णामए जहा रइ मोहणिज्जकम्मए। प. (ख) उसभणारायसंघयणणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स छ पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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